लघुकथा

अटूट बन्धन

गीता:- आज तुम्हारा मूड ठीक नहीं लग रहा है। क्या बात है मुझें तो बता दो?
सीता चुप थी।मन ही मन सोच रही थी।अपने मन की बात किसी को नही कहनी चाहिए।
गीता:- ठीक हैं । तुम अपने मन की बात अगर नहीँ बताना चाहती, तो कोई बात नहीँ हैं।
सीता:- क्या बताऊँ कि मेरे पति ने मेरा विश्वास तोड़ दिया है? अगर किसी को पता चल गया तो बड़ी बदनामी होगीं?
गीता:- क्या सूरज को लेकर परेशान हो ?

गीता की बात सुनकर वह हैरान रह गई।

सीता:- आपको कैसे पता चला? गीता जी।
गीता:- क्योंकि आज तुमने सूरज की प्रसंशा नही की ? नहीँ तो तुम आते ही शुरू हो जाती थीं।
सीता:- सुबह से गुस्से से भरी थी, एकदम फूट पड़ी। उसने मेरे साथ विश्वासघात किया है, मैं उसे माफ़ नहीँ कर सकती।
गीता:- ऐसा क्या हुआ ?
सीता:- कुछ दिन से किसी लड़की के फ़ोन आ रहे हैं ।
गीता:- इसमें परेशान होने कि क्या बात हैं ?
सीता:- जब मैनें उनसे पूछा ,तो मुझें चुप रहने को कह दिया।
गीता:- तुम्हें सूरज पर विश्वास करना चाहिए।
सीता:-आप भी कैसी बात करती हैं? उसने मेरा विश्वास तोड़ दिया। उसका चक्कर चल रहा हैं। आप नही जानती ऐसे… वह कहती चुप हो गई।
गीता:- बस करों, क्या तुम्हें अपने प्यार पर विश्रास नहीं हैं। तुम गलत हो, इसका अहसास तुम्हें हो जाएगा।
सीता:- चुपचाप उठ कर चली गई। घर पर सूरज उसका इन्तज़ार कर रहा था। जिस लड़की के बार-बार फोन आ रहे थे।अब उसके पति बिल्कुल ठीक है। वह बार-बार मेरे सहयोग के लिए आभार प्रकट कर रही थी। उसने कहा आपने सच्चे भाई होने का फर्ज अदा किया हैं,आज । सुबह मैनें तुम्हें भी डांट दिया था। नाराज़ हो, अब कुछ बोलो तो सही ।
सीता:- उसने नम आंखों से सूरज को गले लगा लिया, वह मन ही मन पछता रही थी। उसने क्यों शक किया। प्यार का बंधन अटूट होता है ,जो विश्वास पर चलता है। उसने सूरज को और भी कस के बाहों में जकड़ लिया।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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