कविता

क्षितिज

जीवन क्षितिज के अंत में
मिलूंगा फिर से तुमको,
देखना तुम
मैं कितना बदल सा गया हूं
मिलकर तुमको।
जीवन क्षितिज के अंतिम
छोर में देखना
मेरे ढलते जीवन की
परछाई को,
कितनी बिखर सी गई है
मिलकर तुमको।
जीवन क्षितिज के अंत में
देखना मेरी
डगमगाती सांसों को,
कितना टूट सी गई है
मिलकर तुमको।
— राजीव डोगरा ‘विमल’

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- Rajivdogra1@gmail.com M- 9876777233