जीवनचक्र
सदा होठ़ों पर मुस्कान सजी रहती थी
छोड़ कर चली गई शायद मनचली थी।
अल्हर बचपन करती थी अठखेलियाँ
मिट गये सुहागचिन्ह आई ऐसी आँधियाँ।
होठों पर सदैव सरगम सजे रहते थे
वक्त लेकर आ गई अंतहीन सिसकियाँ।
वक्त की शाख पर फिर फूल खिलने लगा
खोया प्यार वापस लौट कर मिलने लगा।
सारा दिन अब लेखनी से खेलते हैं
बच्चों के संग फिर बचपन याद करते हैं।
यादों का कारवां गोल गोल घुमता रहा
बच्चों के संग फिर से बचपन लौट रहा ।
लौट कर आने लगी सारी खुशियाँ
वक्त पूछ रहा क्योंं आया इतनी दरमियाँ।
संचेतनाएं जागृत हो सुलझाए पहेलियां
मिट रही अब तेरे मेरे बीच सारी दूरियां
आया है जो वापस लौट कर वो जायेगा
चंद वर्षों में फासला फिर से मिट जायेगा।
जीवनचक्र बस यादों में सिमट रह जायेगा
— आरती रॉय