परम संतुष्टि
आज ‘विश्व प्रवासी पक्षी दिवस 11 मई की चित्र क्लिक प्रतियोगिता’ का परिणाम घोषित हुआ था. किशोर के चित्र को प्रथम पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया था. टकटकी लगाकर किशोर अब भी चिड़ियों को खाना खिलाते हुए लोगों के उस चित्र को देखता जा रहा था. बचपन में ऑस्ट्रेलिया में पाए जाने वाले प्रवासी पक्षी बजी (budgie) की एक-एक तस्वीर उसके सामने आती जा रही थी. किशोर ने उसका नाम जोजो रखा था.
”मुझे पनीर अच्छा लगता था, इसलिए मैं जोजो को पनीर खिलाने लगा था कि ममी ने देख लिया और मुझे बताया था कि इसे पनीर नहीं खिलाना है.” फिर ममी ने उसे क्या खिलाना है क्या नहीं की लंबी-सी सूची मुझे पकड़ा दी थी.
”गुड मॉर्निंग जोजो कहते ही वह भी गुड मॉर्निंग जोजो कहता, तो मैं कितना हंसता था! रट्टू तोता कहीं का!” किशोर को जोजो के साथ बतियाने में कितना मजा आता था याद आने लगा.
”तोते की प्रजाति के जोजो को फिर उसका नाम बोलना भी आ गया था. उसे देखते ही वह ‘किशोर किशोर’ कहने लगता.” किशोर को लगा जैसे जोजो कहीं आसपास ही है.
”ममी कहना भी जोजो ने सीख लिया था. पिंजरे में पानी खत्म हो जाने पर वह ”ममी ममी” कहता.” ममी उसकी कटोरी में पानी डाल देतीं.
कभी-कभी जोजो खुश हो नाचने-गाने लगता, तो कभी नाराज भी हो जाता था. उसकी उदासी भी किशोर से छिपी नहीं रह पाती! वह ममी से उसकी उदासी का कारण पूछता. ”पिंजरे में रहना भला किसे अच्छा लगता है!” ममी कहतीं.
”तो फिर मैं इसे आजाद कर दूं?” किशोर ने ममी के हां कहते ही उसे आजाद कर दिया था. उसे आजाद कर वह खुद उदस हो गया था. लॉकडाउन के आज के जमाने में उसे जोजो को आजादी देने की भावना ने परम संतुष्टि दी थी. कैद में रहना कितना दुखदाई होता है! अब वह जान गया था.
लॉकडाउन के चलते ”परम संतुष्टि (लघुकथा)” के नायक किशोर ने आजादी की कीमत समझी और बरसों पहले जोजो को आजाद करने से उत्पन्न हुए उसके उसके उदासी के बादल छंट गए. लॉकडाउन के चलते हुए सुदर्शन खन्ना ने अपने समय का सदुपयोग सकारात्मक अध्ययन में लगाया और”अटल रत्न सम्मान” की प्राप्ति की. लॉकडाउन के चलते गौरव द्विवेदी ने अपने अधिकार की लड़ाई के लिए सक्रिय संघर्ष करके अपनी क्वारन्टीन की अवधि घटवाई और परम संतुष्टि पाई. इन तीनों नायकों को हमारा हार्दिक नमन.