कविता

आस

मेरे जीने की तुम आस हो
नब्ज है चल रही जो मेरी
उसकी हर इक अहसास हो
घायल हैं जिसकी अदा पे हम
तुम वो मीठी मीठी प्यास हो
था मैं पहले बड़ा तन्हा तन्हा
अब मेरे जीने की तुम आस हो
रब से है बस इतनी सी दुआ
हम तुम सदा साथ साथ हो
माना कि ये मुमकिन नहीं
जी लेंगे तेरी यादों के सहारे
इकरार तो करो इक बार प्रेम का
फिर चाहे मौत भी आ जाये मुझे
गंवारा नही कब्र से भी अपने
तुम्हे प्यार करेंगे तुम्हे प्यार करेंगे

मौर्यवंशी शिव कुमार

M- 9696668143 भदोही, उत्तर प्रदेश