कितने जटिल हैं कुछ लोग
कितने जटिल हैं कुछ लोग, जो अब भी नहीं सुधर रहे,
ग़मगीन हालातों में भी, मनमानी करने से नहीं डर रहे,
समय ऐसा है जब सभी का एक ही लक्ष्य होना चाहिए,
मिलकर महामारी से निपटना ही, उद्देश्य होना चाहिए,
अपना और पराया, विषम परिस्थिति में पता चलता है,
जिस माटी में पले, क्या उससे कोई दगा कर सकता है,
हैं हज़ारों चेहरे, जिनने अपना असली रूप दिखाया है,
कल्पना भी नहीं की थी, ऐसा जख्म देश को दे डाला है,
देश माफ़ नहीं करेगा, ऐसे नापाक इरादे रखने वालों को,
शर्मिंदा होगी पीढ़ी उनकी, देखकर इतिहास के पृष्ठों को,
काश मान लिए होते सभी ने जो दिए गए थे हमें आदेश,
हालात कुछ और होते, जो कुछ लोग ना करते ऐसा द्वेष।
रत्ना पांडे, वडोदरा (गुजरात)