लघुकथा

कुप्रथा

फादर मैंने जॉब के लिए कई कंपनियों में अप्लाई कर दिया है। मेरी प्रतीक्षा लंबी होती जा रही है।  2 साल से मैं प्रयासरत हूं ,आप सुन रहें है ना फादर। शैला माय चाइल्ड तुम जल्दी मत करो, जल्दी का काम शैतान का। फादर आई कांट वेट एनी मोर, आई नो माय चाइल्ड, प्लीज वेट। ओके फादर। गॉड ब्लेस माय डियर।

घर पर कई पत्र देखकर वह चहक उठी। उसने एक बड़ी कंपनी  का चुनाव किया। पापा मैं जा रही हूं। मैंने एक बड़ी कंपनी में अच्छी जॉब चुन ली है। पर तुम वहां अकेले कैसे रहोगी मेरी बच्ची।पापा ने चिन्ता व्यक्त की। मैं संभाल लूंगी पापा। नई जगह पर शैला खुश थी। घर की हालात बहुत खराब थी। कंपनी में दो लड़कियां और काम करती थी पर उनके हाव-भाव शैला को अच्छे नहीं लगे। मिस शैला अगर आप कंपनी में काम करना चाहती हैं। तो आपको हर तरह से सहयोग करना पड़ेगा। यह प्रथा आगे बढ़ने के लिए जरूरी है। मैं समझी नहीं आप क्या कहना चाहते हैं। तुम इतनी भी बच्ची नहीं हो जो मेरा इशारा ना समझ सको। मतलब आपकी मनमानी को मुझे स्वीकार करना होगा। हां अब तुम समझ गई हो शैला। वह मन ही मन खुद को धिक्कार रही थी। उसने सोंचने के लिए रात भर का समय मांगा।उसनें पैसों के लालच फँसकर कितना गलत चुनाव कर लिया।वह रात भर छटपटाती रही,वह दोराहे पर खड़ी थी। एक तरफ जॉब थी, दूसरी तरफ उसका आत्म-सम्मान था। अगले दिन उसने अपना इस्तीफा मैनेजर की टेबल पर रख दिया। सर ये प्रथा नही कुप्रथा है। ऐसी कुप्रथा कतई स्वीकार नहीं कर सकती।वह नए विश्वास से भर कर ऑफिस से बाहर निकल गई। वह अपने फ़ैसले पर खुश थी।

— राकेश कुमार तगाला

राकेश कुमार तगाला

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