गीत/नवगीत

विरासत का हौसला

कदम दो कदम के फ़ासले ये नहीं होता फ़ासला ।
बुलंदियों के ऊंचाई पर रहे  विरासत का हौसला ।।
अपनी हिफाजत करना है
पूर्वजों का विरासत बचाना है
मोहब्बत और शांति की ध्वनि फैलाना है
नफरतों और षड़यंत्रों की दीवारें भी हटाना है…!
काम हमें सभी करना है ये वक्त का फ़रमान है ,
फिर क्यों ये वतन से बे वतन होकर चल चला ।
भव्य भावना हो
सभ्य संभावना हो
कर्म पर मर्म की कामना हो
कल्पवृक्ष सी अटल उज्जवल कल्पना हो…!
मानवीय सभ्यता को भूलकर पथभ्रष्ट क्यों हुआ ,
क्यों तूने फैलाया है विनाश प्रलय का जलजला ।
द्रोहियों का विगत बदल देंगे
विद्रोहियों का संगत बदल देंगे
मान और शान का अनंत बदल देंगे
अपनी आसमानों का हम रंगत बदल देंगे…!
देख बदल रहा है रंग हमारे  खुले आसमान का ,
बुलंद है रगों में रंगत बाज़ू ए फौलाद ए हौसला ।
ह्रदय हारिल है
माना कि राहें जटिल है
नीति रणनीति कूटनीति कुटिल है
आगे बढ़ना है बढ़ते जाना यही मंजिल है…!
दो कदम तुम बढ़ाओ और दो कदम हम बढ़ाएं ,
आओ करीब बैठो बैठकर सुलझाएं हर मसला ।
कदम दो कदम के फ़ासले ये नहीं होता फ़ासला ।
बुलंदियों के ऊंचाई पर रहे  विरासत का हौसला ।।
— मनोज शाह मानस 

मनोज शाह 'मानस'

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