स्वदेशी, आत्मनिर्भर, स्वावलंबी भारत
स्व अर्थात निज, स्वदेशी अर्थात निजी राष्ट्र में निर्मित। आज कोरोना संक्रमण ने हमें ऐसे दोराहे पर खड़ा कर दिया है जहां से हमें स्वदेशी एवं विदेशी वस्तुओं के उपयोग पर चिंतन करना बहुत जरूरी हो गया। चीन जिसने कोरोना संक्रमण को पूरे विश्व में फैला दिया, जिसके कारण आज मानव सभ्यता पर खतरा मंडरा रहा है, उसका व्यापार जगत में बहुत बड़ा अधिपत्य है भारत भी चीन से कई वस्तुएं आयात करता है किंतु अब जबकि कोरोना वायरस संक्रमण के कारण विश्व जगत चीन के विरोध में खड़ा है, सारे व्यवहार, लेन देन, व्यापार आदि समाप्त कर रहा है, ऐसे समय हमें भी स्वदेशी के चिंतन को जन-जन तक पहुंचाना होगा। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वदेशी को अपनाने का जो आहवान किया उससे जनता के विचारों में एक सकारात्मक परिवर्तन आया है। आज जनमानस टूथपेस्ट, साबुन से लेकर दैनिक उपयोग की सारी वस्तुओं की तुलना स्वदेशी और विदेशी के आधार पर करने लगा है, स्वदेशी को प्राथमिकता देने लगा है। यह बहुत महत्वपूर्ण है जब भारत का 135 करोड़ जनमानस यह तय कर लेगा कि स्वदेश निर्मित वस्तुओं का ही उपयोग किया जाए, भारत और अधिक तीव्र गति से विकास के रथ पर आगे बढ़ेगा। कोई भी विश्वशक्ति भारत को सिरमौर बनने से नहीं रोक सकेगी।
बदलते परिदृश्य व विश्व जगत में भारत की उपस्थिति को देखकर हमें यह विश्वास है कि अब वह दिन दूर नहीं जब भारत विश्व गुरु बन कर समस्त विश्व का मार्गदर्शन करेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन WHO की अध्यक्षता भारत को मिलना इस यात्रा का स्वर्णिम पड़ाव है आगे भी कई कीर्तिमान भारत को मिलने वाले हैं, उसके लिए भारत वासियों का स्वदेश निर्मित वस्तुओं का उपयोग, गांवों को आत्मनिर्भर बनाना, इस दृष्टि को लेकर कार्य करने की आवश्यकता है क्योंकि गांव की आवश्यकता कम उत्पादन अधिक होता है, इस कारण गांव का आत्मनिर्भर बनना कोई अधिक दुष्कर कार्य नहीं, केवल एक सही चिंतन व मार्गदर्शन ग्राम वासियों को मिलना चाहिए। प्राकृतिक जल संरचनाओं की निर्माण करना, तालाब बनाना, कुए बनाना, सड़कें बनाना, विद्यालय व स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध कराना। ऐसे आवश्यक विषयों पर काम करके गांवों को पूर्ण रूप से आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है। गांव आत्मनिर्भर बनेंगे तभी भारत शक्तिशाली बनेगा। इसके लिए जैविक खेती हेतु किसानों को तैयार करना प्रथम प्राथमिकता होना चाहिए। रासायनिक खेती के दुष्प्रभाव, बढ़ते खर्च, जमीन का अनुपजाऊ होना किसान आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण है, जिसे जैविक खेती के माध्यम से हल किया जा सकता है। मध्यप्रदेश के झाबुआ में शिवगंगा के नाम से एक संस्था गांव को आत्मनिर्भर बनाने का ही कार्य कर रही है, महेश शर्मा अपना जीवन ग्रामीण सुधार को समर्पित कर चुके है, उनके प्रयासों से दर्जनों गांवों की दशा बदल गई। हजारों जल संरचना, दर्जनों तालाब के रूप में ग्रामीण के सामूहिक श्रम से प्रकृति और भूमि दोनों ही लहलहाने लगे है। इसी प्रकार हर जागरूक ग्रामीण को आगे आकर गांव की कमान संभालनी होगी। ग्राम विकास व स्वावलंबन जरूरी है, यह तब अत्यंत आवश्यक हो जाता है जब आप उस देश के नागरिक हो जहां 600000 से भी अधिक गांव हैं इसलिए ग्रामों की आत्मनिर्भरता उनका स्वावलंबन व शहरों का स्वदेशी की ओर लौटना आज के युगानुकूल बेहद जरूरी है।
— मंगलेश सोनी