फेमिनिस्ट पोइटेस (लघुकथा)
एक कवयित्री कहीं भाषण दे रही थी, “मैं नारीवादी कवयित्री हूँ…! ना मैं मेरीकॉम हूँ, ना सानिया मिर्ज़ा हूँ …! मैं नारीवादी कवयित्री हूँ। एक दफा मैत्रेयी पुष्पा ने लिखी, राजेन्द्र यादव को मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता ! सच में क्या..? फिर तो कइयों से हम पीछे हैं भाई । राजेन्द्र दा की बदौलत मैत्रेयी की पहचान साहित्य जगत में हो पाई…! वरना आज के दौर में सीढ़ी-दर-सीढ़ी फिसलना आसान हैं । आज हंस के पाठक की कमी तथा संपादकीय चित्रण का आभाव खलता तो है । नई कहानी कविताओं का स्थान कहाँ है…? सोच को विस्तार देने की जरूरत है!”
…..और पुरुष साहित्यकार टुकटुकी लगाए सिर्फ सुन रहे थे !