कविता

जीवन की पहली शिक्षिका

माँ ! माँ !! माँ !!!
जीवन की पहली शिक्षिका,
रसोई से होते हुए देश दुनिया को
अपने आँचल से समेटने की जी तोड़ कोशिश में लगी हैं ।
उनकी खुशबू भरी एहसास,
स्नेह से लिपटी दरियादिली,
उमस सीजन को भी ठण्डाई देती है ।
माँ ! माँ !! माँ !!!
ना जाने कितने लम्हों से जुड़ी हूँ तुमसे,
कुछ पल और जोड़ लेती !!
दिवास्वपन सा लगता तेरा साथ, तुम हो तो होऊं मैं।
ज्ञान की अविरल धारा हो और हो प्रभा सी किरण….
उन किरणों के तेज से ही बनी मेरी यौवन।
हमेशा रोका हमें अज्ञात पथ पर जाने से,
खुद भविष्य द्रष्टा की प्रहरी बन खड़ी रही।
आज तुम्हारी भूमिका समाजवरण कर रही है,
किन्तु हम भूल गए है कि हमारा विकास,
उत्थान तुम्हीं से है,
क्योंकि तुम्हीं प्रकृति की उदात्त चेतना जो हो।
हाँ, माँ तुम्हें प्रणाम !!

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.