एक ही धर्म
जैसे ही शाम के पांच बजे का सायरन बजता है, सभी मजदूरों के फावड़े-तसल्ले आराम करने के लिए आजाद हो जाते हैं. मजदूर भी हाथ-मुंहं धोकर, गमछे से पोंछ-पांछकर घर जाने को तैयार हो जाते हैं.
घर जाकर नफीसा नमाज और सिजदा पढ़कर ताज़ातरीन होती है.
मंदिर में भगवान के दर्शन करती हुई रीना घर जाकर दिया-बाती करने के बाद घर के काम में लग जाती है.
मार्गी चर्च में हाजिरी लगाकर अपने लिए नियत काम पूरा करके संतुष्टि पाती है.
सुबह काम पर फिर सबका एक ही धर्म हो जाता है- ‘मजदूरी’ और उससे जुड़ी हुई दुश्वारियां. सब कुछ भूल-भालकर वे एक दूसरे की विपदा में सहायक बनते हैं.
मजदूरों से जुड़ी हुई अनेक दुश्वारियां अत्यंत कष्टदायक होती हैं. अनेक मजदूरों को अपने रहने की जगह काम नहीं मिलता, तो उनको अन्यत्र काम करने जाना पड़ता है. कभी वे अकेले जाते हैं, कभी सपरिवार. दूं ही अवस्थाओं में उन्हें अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है. खुदा न खास्ता वहां कोई विपदा आ जाए तो उन्हें वहां के मूल निवासी न होने के कारण कोई मदद मुहय्या नहीं होती. प्रवासी मजदूर बनकर उन्हें अपने कष्ट का सामना स्वयं ही करना पड़ता है, जो सुविधाओं के अभाव में स्वयं में अत्यंत मुश्किल और कष्टदायक है.