लघुकथा

मानवता

रोते बच्चे को गोद में उठाए वो मजदूर सी औरत जैसे ही डिस्पेंसरी में पहुंची तो उसकी वेशभूषा और हड़बड़ी से अनायास ही सबका ध्यान उसकी ओर चला गया।

“डाक्टर साहिब,‘मेरे बच्चे को चोट लग गई है, बहुत खून निकल रहा है, जरा देख लीजिए” , पसीने से लथपथ वो औरत हांफती हुई बोली

डाक्टर ने इशारा करके कम्पाउंडर को बुलाया और वह मरहम पट्टी करने लगा .

बच्चे की रोने के आवाज से तड़पती हुई वो औरत खुद ही बड़बड़ाती जा रहे थी, “कितनी बार समझाया है, चुपचाप बैठा कर, दरवाजे से न खेला कर। देखा न,  दरबाजे की चौखट और पल्ले के बीच हाथ आ गया।

“तुम कहां थी उस वक्त, कहीं काम करती हो क्या?” कम्पाउंडर बोला ।

“हाँ! यहीं पास के घर में काम करती हूँ”, वो पसीना पोंछते हुए बोली।

कम्पाउंडर ने बच्चे के हाथ में पट्टी कर, इंजेक्शन लगा दिया था और फिर उसे डाक्टर के पास भेज दिया ।

डाक्टर पर्ची पर कुछ लिखते हुए बोला, ” ,ये दवाई बाजार से ले लेना और मेरी फ़ीस 200 रुपए जमा करवा देना ।

इतना सुनते ही उस औरत को जैसे होश आया । जल्दबाजी में वह अपने बेटे को महंगे हस्पताल में ले आई थी । आंखों में बेबसी के आंसू आ गए और वह बोली, “हम गरीब लोग हैं डाक्टर साहब! मेरे पास बस 50 ही रूपये हैं ।”

इससे पहले डाक्टर उस पर चिल्लाता, कम्पाउंडर बोला, “कोई बात नहीं सर, इसके पैसे मैं भर दूंगा ।”

कृतिज्ञता और स्तब्ध नेत्रों से वो औरत और उधर बैठे लोग उस गरीब कम्पाउंडर को देख रहे थे  जिसमें मानवता अभी भी बाकी थी ।

— अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 24 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed