ग़ज़ल
लबों पे लेकर निकले हैं इंकलाब का नारा लोग,
बदलेंगे तस्वीर वतन की हम जैसे आवारा लोग,
ऐसी आँधी आएगी ज़ालिम तू भी बच ना पाएगा,
सीना तान कर खड़े हुए हैं बेघर बेसहारा लोग,
कर लीं जितनी करनी थी फरियादें गूँगे बहरों से,
अब ना दोहराएंगे ऐसी गलती कोई दोबारा लोग,
कशकोल नहीं शमशीरें हैं अब आवाम के हाथों में,
जो भी राह में आएगा कर देंगे पारा-पारा लोग
छुपने की कोई भी तुमको जगह नहीं मिल पाएगी,
निजाम पलटकर रख देंगे तेरा सारा का सारा लोग
— भरत मल्होत्रा