नीरीह बेचारी हाथी माँ को मौत के घाट उतारने वाले हैवान को मृत्यु दण्ड मिलना चाहिए
वह इस धरती की करूणा, ममता, दया, स्नेह आदि मानवीय गुणों से भरपूर, एक धारित्री या माँ थी, उसके दिल-दिमाग में कुछ बहुत कोमल भविष्य के सपने थे, उस सपने में इस दुनिया को सृष्टि के सबसे अनमोल, अद्भुत, अद्वितीय, स्निग्ध, अतुलनीय, सुकोमल एक शिशु के रूप में उपकृत करते हुए की एक बहुत ही निश्छल, भोला एक शिशु के रूप में उपहार देने की मधुर सपना पाले और दृढता के साथ अपने उस पुनीत उद्देश्य की पूर्ति हेतु वह माँ अपने और अपने गर्भस्थ शिशु के परिपोषण के लिए, वह अपने निवास जंगल को छोड़कर, इस आशा और उम्मीद में वह पास के गाँव की गलियों में इसलिए घूम रही थी कि इस मानव बस्ती का कोई मानव उसके और उसके पेट में पल रहे बच्चे की भूख से तरस खाकर, जरूर निजात दिलाएगा, परंतु उस निश्छल माँ को किंचित मात्र भी इस बात का जरा भी अहसास नहीं था कि इस मानव बस्ती में मानव के रूप में दानव भी रहते हैं, उन्हीं दानवों में से एक उस भूखी माँ को एक फल (शायद अनन्नास को अन्दर से खोखलाकर, उसमें ताकतवर विस्फोटक भरकर )उसे खिला दिया ! उसको चबाते ही उसके मुँह में भंयकर विस्फोटक हुआ, उसकी जीभ, उसके दाँत, उसका जबड़े बुरी तरह लहूलुहान हो गये, उसके मुँह के चिथड़े उड़ गये, उसका मस्तिष्क अकथनीय दर्द से भन्ना गया, वह भयंकर दर्द से बिलबिला उठी ! इतना सबकुछ होने के बावजूद भी वह अपने साथ इतना बड़ा प्राणघातक जुल्म और निर्ममतरीके से हत्या करने के प्रयास करनेवाले दानव से कोई प्रतिशोध नहीं ली, क्योंकि वह सचमुच में एक ममतामयी माँ थी ! वह इतनी बुरी तरह घायल अवस्था में भी चुपचाप पास बहती नदी की तरफ चली गई, नदी में जाकर वह तीन दिन तक अपना बुरी तरह से घायल मुँह को पानी में इस आशय से डुबोए रही कि उसके मुँह, जीभ, जबड़ें आदि अंगों में हो रहे असहनीय दर्द से कुछ तो निज़ात मिले ! सम्भवतया उसे कुछ निज़ात मिली भी हो, परन्तु चोट बहुत ही गंभीर और प्राणघातक थी, तीन दिनों बाद वह माँ अपने गर्भस्थ शिशु के सपनों के साथ सदा के लिए इस क्रूर दुनिया के क्रूर दानवों की वजह से सदा के लिए जलसमाधि ले ली।
यह ममतामयी माँ कोई और नहीं, अपितु केरल के पलक्कड़ जिले के, साइलेंट वैली (जहाँ एक भी झिंगुर नहीं हैं) में, बहनेवाली वेल्लियार नदी के किनारे के घने जंगलों में सुख से रहने वाली एक हथिनी माँ की दर्द भरी दास्तान है, जो भूख से व्याकुल होकर, मल्लपुरम जिले के अट्टापडी नाम की जगह के पास के गाँव की गलियों में इसलिए चली गई कि वहाँ रहनेवाला कोई दयालु, रहमदिल मानव उसे और उसके पेट में पलनेवाले बच्चे पर रहम खाकर कुछ न कुछ उसे खाने को दे देगा, परन्तु उसे नहीं पता था कि इस गांव में मानव के भेष में कुछ दानव भी रहते हैं, हुआ भी यही किसी मानव के भेष में रहने वाले किसी दानव ने उक्त वर्णित वीभत्स, दर्दनाक, निर्मम तरीके से उस ममतामयी माँ पर हमला किया कि बेचारी वह माँ 27-5-2020 को इस दुनिया से सदा के लिए अपना नाता तोड़कर, चली गई !
नदी में खड़ी उस बुरी तरह घायल माँ को सबसे पहले देखनेवाले वन अधिकारी ने उसकी दुर्दशाग्रस्त हालात का बयान अपनी फेसबुक वॉल पर कुछ इस तरह लिखकर किया है कि जब हमने उसे देखा, वह नदी में निश्चल, अपना सिर पानी में डुबाए खड़ी थी, उसे इस बात का अहसास हो गया था, कि वह मरनेवाली है। उसने नदी में खड़े-खड़े ही जलसमाधि ले ली।
अब प्रश्न है कि मानव समाज में रहने वाले उस निर्दयी, क्रूर, दरिंदे, नरपिशाच दानव को जो इस वीभत्स तरीके से उस माँ की निर्ममतरीके से, धोखे से हत्या किया है, क्या उस दानव को मानव समाज में एक मिनट भी रहने का ह़क है ?, कतई नहीं है, ऐसे दानव को किसी भी तरह से ढूंढ़कर, चिन्हित कर उसे इस जघन्यतम् अपराध के लिए कठोरतम् दण्ड मृत्यु दण्ड देना ही चाहिए, ताकि भविष्य में इस तरह की क्रूरतम् घटनाओं की पुनरावृत्ति पुनः किसी माँ के साथ घटित न हों।
— निर्मल कुमार शर्मा