पं. दीनदयाल उपाध्याय को ‘भारतरत्न’ मिले !
श्रीकृष्ण की नगरी मथुरा में 1916 में जन्म, फिर 11 फरवरी 1968 को मुगलसराय में मृत्यु को प्राप्त पंडित जी की विचारधारा को कई दशकों तक राजनीतिक कारणों से नज़रअंदाज़ कर दिया गया था, किन्तु हर विचारक के कोई न कोई फॉलोवर्स तो हो ही जाते हैं । तभी तो भारत सरकार ने इनके विचारों को गत वर्ष से ही अमलीजामा पहनाना शुरू किए, जिनसे जन्मदिवस को जन्म शताब्दी वर्ष के रूप में मनाने को दृढ़ निश्चयी हो पाए ।
पंडित जी ने गाँवों की सर्वसम्पन्नता के विहित ही अपने कार्यों को राष्ट्र के प्रति एकमौला बना पाए । इतना ही नहीं, उन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा को एक परिवार की संरक्षित रहने तक ही अखंड बताया । आज परिवार को तोड़ने में हमारे विविधप्रकार के दुश्मन हमारे इर्द-गिर्द ही हमें मिटाने को लेकर जाल बुन रहे हैं । भोजन, वस्र, आवास के साथ हमारी मूलभूत आवश्यकता ‘संस्कृति’ की है, जो कि गेहूँ और गुलाब के प्रति हमें संवेदनशील बनाता है ।
पं0 दीनदयाल उपाध्याय की जन्म शताब्दी पर भारतीय रेलवे ने मुगलसराय रेल स्टेशन का नाम बदलकर पं0 दीनदयाल नगर कर दिया है । चूँकि मुगलसराय के रेलवे ट्रैक पर वे पहले से ही मृत पाए गए थे। ‘अंत्योदय’ के इस अवधारक को मरणोपरांत ‘भारतरत्न’ अलंकरण से विभूषित किये जाने चाहिए।