यादों के झरोखे से- 21
(विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर विशेष)
पर्यावरण-ब्लॉग्स और पाठकों की प्रतिक्रियाएं
हमारे पाठक इतनी नायाब प्रतिक्रियाएं लिखते हैं, कि उन अप्रतिम प्रतिक्रियाओं में अनमोल जानकारियां समाहित होती हैं. हमें लगता है, कि इन जानकारियों को ब्लॉग के रूप में आप तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक भी है और उपयोगी भी. पर्यावरण अपने आप में इतना विराट विषय है, कि इस पर काम करने या चर्चा करने के लिए हमें केवल विश्व-पर्यावरण-दिवस की प्रतीक्षा नहीं करनी है. हर दिन विश्व-पर्यावरण-दिवस है, क्योंकि पर्यावरण का शुद्ध होना स्वास्थ्य व जीवन के लिए लाभकारी है.
हम हाल ही में विश्व-पर्यावरण-दिवस के उपलक्ष में तीन ब्लॉग्स प्रकाशित कर चुके हैं. पहले ब्लॉग की पहली ही प्रतिक्रिया इतनी नायाब और अप्रतिम थी, कि हमारे मन में ऐसी प्रतिक्रियाओं को आपके पास ब्लॉग के रूप में पहुंचाने का विचार आया. हमने तुरंत लिखा-
”आपके माध्यम से हम सभी पाठकों को बताना चाहते हैं, कि अभी कुछ दिन तक विश्व पर्यावरण दिवस पर ब्लॉग लाए जाने की योजना है. 5 जून के अंतिम ब्लॉग में पाठकों की चुनिंदा प्रतिक्रियाओं का समावेश किया जाएगा”.
इसी संदर्भ में आपके समक्ष प्रस्तुत हैं पाठकों की वे चुनिंदा प्रतिक्रियाएं, जिनमें कोई विशेष संदेश समाहित है-
ब्लॉग- मैं सृष्टि हूं
”सृष्टि की छोटी-सी बात में कितना बड़ा संदेश समाया हुआ है. सृष्टि मां की तरह सर्जक भी है और अति धैर्यवान भी, इसलिए हमारी अनेकानेक गल्तियों को नज़र अंदाज़ करते हुए भी हमें सब कुछ दे रही है. आखिर हमारी यह मनमानी कब तक चलेगी! अति सर्वत्र वर्जयेत. हमारी अपनी गल्तियों के कारण इस सृष्टि की खूबसूरती, सर्जकता और धैर्यशीलता चुकती जा रही है. परिणाम हम और हमारी आने वाली पीढ़ियां भुगत रहे हैं. आइए वांछित प्रयत्न कर सृष्टि की खूबसूरती को बढ़ाएं. विश्व पर्यावरण दिवस मनाकर या पुरस्कार वितरित करने मात्र से सृष्टि की उत्पादकता और सृजकता में वृद्धि नहीं होने वाली. सृष्टि को खूबसूरत बनाना हमारे अपने हाथ में है और हमारे हित में भी. यही सृष्टि का अमर संदेश है”.
”सृष्टि को इग्नोर करके हम कहीं के नहीं रहेंगे, क्योंकि सृष्टि से ही हमारा जीवन है. जगह-जगह पॉलीथिन बर्बादी की ओर ले जा रहा है. कचरा और तरह-तरह के कैमिकल पानी में घुलकर हमारे शरीर को ज़हर भरा कर देंगे और हम बर्बाद हो जाएंगे. धरती मां की पुकार सुनना बहुत जरूरी है, वर्ना यह प्लैनेट रहने के काबिल नहीं रहेगा”.
”सृष्टि की व्यथा को आपने शब्दों में ढाल कर पाठकों के समक्ष रखकर बहुत कुछ सोचने पर विवश कर दिया है. आज जिस तरह से पर्यावरण की अनदेखी की जा रही है, वह दिन दूर नहीं जब लोग शुद्ध हवा-पानी को तरसेंगे. हमारे पूर्वजों ने हमेशा ही पर्यावरण संरक्षण का कार्य किया है. कुदरत के विभिन्न स्वरूपों की पूजा करना हमारी संस्कृति है. सृष्टि के प्रत्येक खंड में हम भगवान व देवी देवताओं के स्वरूप को महसूस करते हैं, लेकिन अब आधुनिकता में अंधे होकर हम आस्था को भी अंधविश्वास की नजर से देखने लगे हैं. यही इस समस्या की सबसे बड़ी वजह है”.
”सृष्टि का एक एक कण एक-दूसरे से जुड़ा है. हम पेड़ों से जुड़े हैं कभी यह बात बड़ी हास्यास्पद लगती थी पर अब तो यह साबित हो चुका है. सूर्य और चांद पर जो घटित होता है, उससे समुद्र के पानी तक में ज्वार-भाटा आता है. लोग समझ लेते हैं अगर मैंने नहीं भी किया तो क्या? तो फिर वही होता है, कि किसी ने उपाय बताया कि सभी गांव वाले रात को एक एक लोटा दूध कुएं में डालें तो इस संकट से मुक्ति मिलेगी. सभी ने सोचा कौन देख रहा है? मेरे अकेले के दूध के बदले पानी डालने से क्या फर्क पड़ जायेगा? सुबह कुएं में पानी-ही-पानी था, किसी ने भी दूध नहीं डाला. ऐसा न हो. पर्यावरण का सम्बंध सिर्फ भोतिक नहीं है, हम विचारों से भी वातावरण अशुद्ध करते हैं. हमें विचारों से भी हिंसा नहीं करनी चाहिये. जहां कुछ व्यक्ति आत्महत्या करते हैं, वहां उनके मरने के बाद भी उनकी मानसिक तरंगें वहां के वातावरण को दूषित करती हैं. कमजोर मानसिकता वाले व्यक्ति जब ऊहापोह में वहां पहुंचते हैं, तो वहां का वातावरण उसे आत्महत्या की ओर प्रेरित करता है. इसलिए सृष्टि को भोतिक के साथ-साथ सात्विकता से शुद्ध रखना भी उतना ही आवश्यक है”.
ब्लॉग- Pollution का Solution
”स्वच्छता, प्रदूषण और पर्यावरण के लिए जागरुक करते हुए बहुत साल पहले यह कविता नभाटा में प्रकाशित हुई थी. तब इस कविता पर संपादक महोदय की टिप्पणी इस प्रकार थी- ”हिंदी में अंग्रेजी का तड़का मारकर हमारी रीडर ने भेजी है एक बेहद दिलचस्प कविता, जिसे पढ़ना जरूरी भी है”. उतना ही जरूरी है- स्वच्छता, प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति जागरुक होना और जागरुक करना. उसी का एक प्रयास है- यह कविता, जो स्कूल के छात्रों के अनुरोध पर लिखी गई थी और कई कविता-प्रतियोगिताओं में सर्वश्रेष्ठ विजेता के पुरस्कार से पुरस्कृत हुई”.
”आपने खुद ही दे दिया pollution का solution
कैसे पूरा हो यह Resolution?
यूपी की सांसद रावत ने सरयू में फेंकी bottle
मंत्री धरमपाल सिंह साथ में ध्यान दे रहे little.
मंत्री आने से पहले कचरे से भर दो road.
झाडू से पहले-पहले कर लेना कैमरा load.
ध्यान रहे अखबारों में पहले पेज पर आये photo
आखिर यही करने का ही तो है हमारा motto.
कैसे पूरा हो यह Resolution?
यूपी की सांसद रावत ने सरयू में फेंकी bottle
मंत्री धरमपाल सिंह साथ में ध्यान दे रहे little.
मंत्री आने से पहले कचरे से भर दो road.
झाडू से पहले-पहले कर लेना कैमरा load.
ध्यान रहे अखबारों में पहले पेज पर आये photo
आखिर यही करने का ही तो है हमारा motto.
मेरे कहने का तात्पर्य है जनता तो बहुत कुछ करना चाहती है करना भी चाहिये पर सरकार गंभीर नहीं है”.
”पर्यावरण प्रदूषण एक विराट व वैश्विक समस्या है, जिसकी चुनौती से संपूर्ण सृष्टि ख़तरे में है! पर्यावरण की रक्षा करना स्वयं की रक्षा करना है! जिंदगी की दौड़ में जीतने के लिए हम इतने आगे बढ़ते चले गये, कि जीवन का असली उद्देश्य बहुत पीछे छोड़ आए. अभी भी अगर और आगे बढ़े तो वो दिन दूर नहीं, जब सिर्फ़ धुंआं-ही-धुंआं दिखाई देगा और सांस लेना तो दूर, आंख तक नहीं खोल पाएंगे!
कल पेड़ घने थे जंगल में, आज गमले नज़र आ रहे हैं,
कुछ तो गजब हुआ है बस्ती में, लोग बदले नज़र आ रहे हैं”!
कुछ तो गजब हुआ है बस्ती में, लोग बदले नज़र आ रहे हैं”!
”पतझड़-सी सूखी पड़ी है हड्डियां देह की दवा के लिए
कहीं तो हरियाली रहने दो!
अब ना बनाओ ये ऊंची मीनारों के कटघरे हवा के लिए,
कुछ तो जगह अब खाली रहने दो!
शहर के उठते धुंएं में दम घुटता है दोस्त,
गाँव के कच्चे घरों की खुशहाली रहने दो!
छोड़ो ये पटाखों की गूंज और चुभता धुंआं,
दीपक प्यार का जलाकर ये दीवाली रहने दो”!
कहीं तो हरियाली रहने दो!
अब ना बनाओ ये ऊंची मीनारों के कटघरे हवा के लिए,
कुछ तो जगह अब खाली रहने दो!
शहर के उठते धुंएं में दम घुटता है दोस्त,
गाँव के कच्चे घरों की खुशहाली रहने दो!
छोड़ो ये पटाखों की गूंज और चुभता धुंआं,
दीपक प्यार का जलाकर ये दीवाली रहने दो”!
ब्लॉग- सावधान! पर्यावरण से प्रदूषण हटाना मात्र अभियान न बने
”सावधान!
”पर्यावरण से प्रदूषण हटाना अगर बन गया मात्र अभियान या नारा,
तो समझिए, प्रदूषित हो गया आज, कल और भविष्य हमारा,
सोचिए भावी पीढ़ियों को हम क्या सौगात देकर जाएंगे?
क्या वे प्यास बुझाने को पीएंगे अभियान और भूख मिटाने को खाएंगे नारा?”
तो समझिए, प्रदूषित हो गया आज, कल और भविष्य हमारा,
सोचिए भावी पीढ़ियों को हम क्या सौगात देकर जाएंगे?
क्या वे प्यास बुझाने को पीएंगे अभियान और भूख मिटाने को खाएंगे नारा?”
”पर्यावरण के विषय को लेकर जागरुक करती यह रचना अपने आप में लोगों को व सरकारों को भी अपनी जिम्मेदारियों के प्रति आगाह कर रही है. इन्हें गंभीरता से जिम्मेदारी दिखानी होगी तथा जनता को भी इसे सफल बनाने के लिये भरपूर प्रयास करना होगा, तभी हम कामयाब हो सकते हैं और पर्यावरण की रक्षा कर सकते हैं. बेहतरीन प्रयासों का उत्साहवर्द्धन किया जाना चाहिये”.
”हम सभी का कर्त्तव्य है इस सराहनीय कार्य में योगदान देना. जहां जैसा हो सके जितना हो सके भरपूर योगदान देना. रेल में यात्रा करते समय मैंने पाया कि वातानूकूलित डिब्बों में कचरा फेंकने या खाना खाने के बाद प्लेट फेंकने के लिये कोई व्यवस्था नहीं होती. यहां तक कि चलती ट्रेन में खाना पहुंचाने वाले रेल कर्मचारी तक खाने की प्लेटों को पटरियों पर फेंकने के लिये बाध्य हैं”.
”पॉल्यूशन के बारे में तो हर एक को पता है, लेकिन हर कोई यह सफाई का काम दूसरों के कंधों पर ही छोड़ देता है. प्लास्टिक बैग तो बिल्कुल बैन ही कर देने चाहिये. समस्या यह है कि प्लास्टिक अकेले बैग में ही नहीं है, बल्कि अन्य चीज़ों की पैकिंग में भी है. इसलिए हमें कपड़े के बैग इस्तेमाल करने चाहिएं. आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. बहुत काम तो हुकूमत ही कर सकती है, जैसे कानून बना कर कि सारी पैकेजिंग प्लास्टिक की बजाय पेपर की हो. सफाई एक सोच है, अगर आ जाए तो बहुत कुछ हो सकता है”.
कितनी खूबसूरत बात कही है, ”सफाई एक सोच है, अगर आ जाए तो बहुत कुछ हो सकता है”. आइए हम अपनी सोच को ही स्वच्छतामय कर लें, ताकि प्रयावरण प्रदूषित न होने पाए और समस्त समस्याओं से मुक्ति मिल जाए. इतनी सुंदर और उपयोगी प्रतिक्रियाएं लिखने के लिए सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद.
इन व्लॉग्स को आप गूगल पर सर्च करके पढ़ सकते हैं-
ब्लॉग- मैं सृष्टि हूं
ब्लॉग- Pollution का Solution
ब्लॉग- सावधान! पर्यावरण से प्रदूषण हटाना मात्र अभियान न बने
5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इस खास दिन को मनाने का मकसद धरती और इसके पर्यावरण की सुरक्षा के लिए लोगों को जागरूक करना था। 1974 में इसे मनाने की शुरुआत हुई। तब से लेकर अब तक धरती को बचाने में हम कितना कामयाब हुए और कितनी जागरूकता फैली, इसका हाल किसी से भी छुपा नहीं है। सच तो यह है कि पूरी दुनिया कहती है, ‘पर्यावरण बचाओ-पर्यावरण बचाओ।’ बचाता कोई नहीं है।मौसम का हर साल यूं सरप्राइज देना, उनकी बदलती रंगत, बढ़ती गर्मी, बेमौसम बरसात, कम होती हरियाली, सूखती नदियां-झीलें…ये सारी चीजें हमें संकेत देती हैं कि हमारी धरती दिनोदिन और ज्यादा बीमार होती जा रही है। इसके बावजूद हम इंसान हैं कि चेतने का नाम ही नहीं ले रहे। कल विश्व पर्यावरण दिवस 5 जून पर पर्यावरण विशेष ब्लॉग प्रकाशित होगा. आपकी विशेष उत्कृष्ट प्रतिक्रियाएं 6 जून के ब्लॉग में प्रकाशित की जाएंगी.