कविता

एक रिश्ते की मौत….

एक रिश्ता
जो तारीख से उपजा
कैलेंडर पर बड़ा हुआ
समय के साथ उम्रदराज़ हुआ
एक रिश्ता
जो मन की गहराइयों में उमड़ा
सपनों में जवान हुआ
उम्मीदों में पनपता रहा
एक रिश्ता
जिसमे न थी समय की बंदिश
न दूरियों की परवाह
और न ही भविष्य की फिकर
एक रिश्ता
जो बस प्यार में बना था
प्यार में पला था
और प्यार के लिए था
एक रिश्ता
जिसमे छांव थी तुम्हारी
और धूप मेरी
सुख थे तुम्हारे
दुःख थे मेरे
वर्तमान था तुम्हारा
और भविष्य मेरा
एक रिश्ता
जिसमें जीना तो मुझे था
तुम्हे तो बस टहलना था
मार दिया तुमने मुझे
मेरे अंदर ही कहीं
रिश्ता जब मरता है
कांधा नहीं दिया जाता
अर्थी नहीं निकलती है,
न ही होता है राम-नाम सत्य
वहां तो बस पिघलती है
संवेदनाओं की चाशनी
मैं भोर के तारे सदृश
आकाश में टिक गया
ये देखने को
क्या होगा इस रिश्ते का पुनर्जन्म……
— प्रफुल्ल सिंह

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार लखनऊ (उत्तर प्रदेश) व्हाट्सएप - 8564873029 मेल :- [email protected]