गर्भवती हथिनी की नृशंस हत्या !
गर्भवती हथिनी को बारूद खिलाकर प्राणांत कर दिए, वह भी केरल जैसे 100% शिक्षित राज्य में ! मैं उस असंवेदित व्यक्तियों की कुंठाओं में जानना चाहूँगा, न कि उनके धर्म को लेकर, क्योंकि अपराधी टाइप के लोग हर धर्म में होते हैं ।
हमारे यहाँ साँड़ों की संख्या कभी-कभी बढ़ जाती है, खेतों में लगे फसल नष्ट होने लगते हैं, दुकानों में उनके द्वारा खाद्य-सामग्रियाँ नष्ट की जाने लगती हैं और साँड़ों को भगाने के लिए जब सामाजिक व प्रशासनिक पहल नहीं होती दिखती है, तो ऐसे प्रभावित दुकानदारों व किसानों की संवेदना मर जाती है और वे मकई के भुट्टे में मछली मारने की बंशी लगा देते हैं, ताकि साँड़ उसे खाये और गले में या आँत में बंशी से घायल होकर मर जाये !
इतना ही नहीं, उन अशिष्ट साँड़ों के शरीर पर गर्म पानी व गर्म तेल डालकर दुकानदार भी घोर अशिष्ट और असंवेदित हो जाते हैं ! हम ऐसी धृष्टता के लिए किसे दोषी मानूँ ? इसके कारण और कारक ढूंढ़ने होंगे !
विदित है, टिड्डी भी एक प्राणी है, पर टिड्डियों द्वारा उत्पात क्या है ? भूखी गर्भवती हथिनी को मारा जाना मानव का पाश्विक व्यवहार है, सनकपन है, मजाक-मजाक में है, तो क्रूरता लिए वीभत्स मजाक है, जिनके लिए आपराधिक कृत्य करनेवाले दोषी तो है ही, साथ ही स्थानीय प्रशासन भी दोषी हैं।