वृक्षों का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व
वृक्षों का आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक दोनों ही दृष्टि से विशेष महत्व है ये जहां विभिन्न त्योहारों तिथियों पर पूजे जाते हैं वहीं विज्ञान इनके फल, फूल, मूल एवं छाल का प्रयोग कर नित नए अनुसंधान करने में लगा हुआ है जिनसे की अनेक जानलेवा बीमारियों से हमारी रक्षा हो सके|
मानव शरीर में शायद ही ऐसा कोई रोग हो जिसका निवारण इन वृक्षों और वनस्पतियों के पास न हो आवश्यकता है तो बस इतनी कि हम अपने ऋषि मुनियों के प्राचीन ग्रन्थों को ध्यान से पूरी श्रद्धा के साथ टटोलकर देखें जिनमें असाध्य रोगों के निवारण की अनेक युक्तियाँ एवं प्रयोग दिए गए हैं उन प्रयोगों का वैज्ञानिकरण कर उनसे नई-नई औषधियों का निर्माण कर मानव जीवन को बचाएं |
मत्स्य पुराण में एक कथा आती है जिसके अनुसार दस कुँओं के निर्माण का फल एक तालाब के निर्माण के बराबर, दस तालाबों का निर्माण का फल एक सदगुणी पुत्र के बराबर तथा दस सदगुणी पुत्रों के बराबर पुण्य का फल एक वृक्ष को तैयार करने का माना गया है |
वेदों उपनिषदों तथा आर्य ग्रंथों में इस संदर्भ में विस्तृत विवरण मिलता है कि महान ऋषि तत्वदर्शी संत किन्हीं महलों में नहीं अपितु वनों में रहकर ही सूक्ष्मदर्शी सम्पन्न बने थे और उन्हीं की छाया में उन्होंने सदग्रन्थों का सृजन किया था| सर्व विदित है कि भगवान बुद्ध को कैवल्य वट वृक्ष के नीचे प्राप्त हुआ था|
वृक्षों कि महिमा का वर्णन करते हुए भगवान श्री कृष्ण ने गीता के विभूति योग में कहा है कि “वृक्षों में मैं पीपल हूँ|” विज्ञान भी कहता है कि पीपल के वृक्ष में कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित करने की क्षमता और वृक्षों की तुलना में अधिक होती है प्राकृतिक दृष्टि से ये वृक्ष अति महत्वपूर्ण है इसी बात को प्राचीन काल में हमारे ऋषियों ने भी हमें समझाया और इसीलिए पीपल के वृक्ष को काटना निषेध बताया गया है |
वर्तमान समय मैं जो प्राकृतिक असंतुलन के कारण अनेक प्रकार के संकट उत्पन्न हो गए हैं उनका कारण वृक्षों की निरंतर संख्या कम होना है यदि वक्त रहते वृक्षों की कटाई को रोका नहीं गया तो वातावरण में कार्बन दाई ऑक्साइड की मात्र बढ़ेगी, ग्लेशियर पिघलेंगे और समुद्र का स्तर बड़ेगा जिससे प्रलय आने की स्थिति भी पैदा हो सकती ही |
अग्नि पुराण में वृक्षों कि महिमा को इस प्रकार बताया गया है कि वृक्षों जैसा उपकारक अन्यत्र कोई नहीं है जो अकारण ही बिना भेदभाव के पत्र, पुष्प, फल, मूल, वत्कल (छाल) तथा काष्ठ (लकड़ी) मधुरिमा एवं छाया से प्राणियों पर उपकार करता है |
वृक्षों की उपस्थिति को हमारी संस्कृति ने समय-समय पर सम्मान भी दिया है कई पर्वों, त्योहारों पर ये हम से सम्मानित हुए हैं जैसे तुलसी, पीपल,वट वृक्ष इत्यादि| इन वनस्पतियों ने हमें क्या-क्या नहीं दिया| स्वास्थ्य संरक्षण की शिक्षा के साथ-साथ तुलसी ने हमारे घरों में प्रवेश किया तो प्राण वायु देकर हमारे प्राणों को पोषित करने का दुर्लभ कार्य भी किया वहीं नीम,पीपल आदि वृक्षों ने औषधियों में प्रवेश कर मनुष्य का सबसे बड़ा हितैषी होने का प्रमाण दिया |आज मानव अपने सबसे बड़े हितैषी को भूल कर स्वयं का हित साधने मैं लगा हुआ है |
वृक्ष स्वयं दिन भर धूप सहन करता है और मनुष्यादी आश्रितों को सुखद शीतल छाया प्रदान करता है वृक्ष जीवन में स्वयं दुख ग्रहण कर दूसरों को सुख देने का पावन पुनीत कार्य करने का संदेश भी देता है ऐसे पुण्य प्रतापी वृक्षों को काटने की बात सोचना भी पाप है अतः आइए हम अपनी भूलों का सुधार करने का संकल्प लें और कम से कम पाँच वृक्षारोपण का निश्चय कर प्रकृति को सुंदर बनाने में सहयोग करें |
— पंकज कुमार शर्मा “प्रखर”