स्याह है, रात है
स्याह है, रात है
कोई तो बात है
अंधेरों को चीरती
सन्नाटों को घेरती
कैसी आवाज है ?
सिसक रहा है कोई
सिरहाने पे मेरे
कोई तो राज है ?
दर्द में कौन है
बोल क्यों तू मौन है ?
हुआ क्या आज है ?
फिर उसने बोला
अधरों को खोला
ये तो मेरी ही आवाज है।।
— प्रफुल्ल सिंह
वाह!! लाजवाब