कविता

स्याह है, रात है

स्याह है, रात है
कोई तो बात है
अंधेरों को चीरती
सन्नाटों को घेरती
कैसी आवाज है ?
सिसक रहा है कोई
सिरहाने पे मेरे
कोई तो राज है ?
दर्द में कौन है
बोल क्यों तू मौन है ?
हुआ क्या आज है ?
फिर उसने बोला
अधरों को खोला
ये तो मेरी ही आवाज है।।
— प्रफुल्ल सिंह

प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम"

शोध प्रशिक्षक एवं साहित्यकार लखनऊ (उत्तर प्रदेश) व्हाट्सएप - 8564873029 मेल :- [email protected]

One thought on “स्याह है, रात है

  • अनंत पुरोहित 'अनंत'

    वाह!! लाजवाब

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