पीठ पीछे करने को चर्चा सजी महफ़िल।
रिवाज सा है हो गया लोगों में आजकल।
अपने और पराये का कोई भेद कैसे जाने,
मासूम चेहरा लिए हैं फिरते यहाँ कातिल।
इल्म जिसने सँभाला पहुँच औहदे पर गये,
कुसंगती के संग रह कर बन गए जाहिल।
हवसी दरिंदे लुटते इज्जत नारी की यहाँ
हैं तमाशाई लोग सारे रहते यहाँ बुजदिल।
मुहब्बत में वायदे कर दिखाना आसान है,
टूट कर जब बिखर जाए जुड़ते नहीं दिल।
तुफान से पहले खुद सँभल जाना चाहिये,
फिर पछताना ही पड़ेगा छूट गया साहिल।
चादर देख उतना पैर पसार सोना है भला,
औकात से आगे बढ़ा शिव रोयेगा ग़ाफ़िल।
— शिव सन्याल