कहाँ आगे हम जाएँगे
जो होता था सिरमौर जगत का
सारे देशों का एकमेव नरेश
आज कहाँ है आ गया पतित हो
हमारा प्यारा महान भारत देश!
कहाँ से कहाँ आ गए हैं हम देखो
कहाँ आगे हम भविष्य में जाएँगे
थी एक विलुप्त जाति भारतीयों की
आगे अध्यापक यही तो नहीं पढ़ाएंगे?
स्वप्न में क्यों हो खोये अभी भी?
सत्य को आँख उठा स्वीकार करो
प्रतीक्षा तो चलेगी अनंत काल तक
अपने हाथों अपना तुम उपकार करो।
अपने देश के उस पुरातन प्राचीन
गौरव को किंचित तो याद करो!
समय शेष है अभी भी देशवासियों !
केवल बैठकर यूं ही न अवसाद करो!
यह कदाचित है अंतिम अवसर ही
जो हमें है आज ऐसा प्राप्त हुआ
अब भी अगर चूके अपनी भूल से
तो समझो कि भारत समाप्त हुआ।
यह प्रत्येक संस्कृति की है कहानी
जिसने पौरुष का पथ अपनाया है
अस्तित्व सुरक्षित रह सका उसीका
उसीने विजय का ध्वज फहराया है।
— क्षितिज जैन “अनघ”