चिंतन का महत्व
मनुष्य प्रकृति का एकमात्र ऐसा प्राणी है जिसमें सोच विचार, तर्क वितर्क, चिंतन, विश्लेषण आदि मानसिक क्रियाएं होती रहती हैं। जब भी कोई घटना घटित होती है अथवा समस्या उत्पन्न होती है तो उसका समाधान विचार विमर्श और चिंतन के द्वारा खोजने का प्रयास किया जाता है। यह प्रयास व्यक्तिगत या सामूहिक किसी भी रूप में हो सकता है।निजी समस्याओं के लिए व्यक्तिगत और पारिवारिक अथवा सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक चिंतन की आवश्यकता होती है। इस प्रक्रिया के दौरान हमें अनेक अनुभव प्राप्त होते हैं जो हमारी समझ बढ़ाने का प्रयास करते हैं। हम अपने अनुभवों को भिन्न-भिन्न तरीकों से देखते हैं, उसका विश्लेषण करते हैं और फिर उससे सीखते हैं। चिंतन का तात्पर्य केवल अपने अनुभवों की पुनरावृत्ति नहीं है बल्कि यह अनुभव और समझ के बीच की कड़ी है।प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जॉन डीवी के अनुसार ,”हम अक्सर तब चिंतन करते हैं जब दुविधा या संघर्ष की स्थिति होती है।” जब हम अपने जीवन में किसी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करते हैं तो हम भावनात्मक स्तर पर प्रभावित होते हैं और उससे निकलने के लिए उपायों की खोज हेतु चिंतन करते हैं यह चिंतन पूर्व अनुभव या परिस्थिति को आधार बनाकर किया जाता है जिससे कि उस परिस्थिति विशेष से निपटने के लिए हल प्राप्त होता है। यदि चिंतन या सोच विचार किए बिना ही हम किसी दुविधा या संघर्ष की स्थिति से निकलने का प्रयास करें तो संभव है कि हम संकट में पड़ जाएं। चिंतन के दौरान सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पक्षों पर विचार किया जाना चाहिए जिससे हम मार्ग की बाधाओं का सामना करने के लिए मानसिक तौर पर तैयार रहें।
“चिंतन” की अवधारणा “चिंता” से परे है ।सामान्यतः चिंता और चिंतन को एक ही अर्थ में ले लिया जाता है किंतु ऐसा नहीं है। चिंता केवल समस्याओं का उल्लेख है जबकि चिंतन प्राप्त अनुभव के आधार पर उससे निकलने का उपाय ।वर्तमान परिवेश में चिंतन की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है। अधिकांश किशोरों और युवाओं में इसका नितांत अभाव मिलता है।यही कारण है कि त्वरित सफलता की चाह में वे किसी कार्य अथवा उद्देश्य के सकारात्मक व नकारात्मक पक्षों के बारे में विचार किए बिना ही अपने कदम बढ़ा लेते हैं और असफलता हाथ लगने पर शीघ्र ही हताश भी हो जाते हैं। यह हताशा कभी-कभी इतनी हावी हो जाती है कि वे उससे उबर नहीं पाते हैं।कुछ प्राणघातक कदम उठा लेते हैं, कुछ नशे और अपराध की ओर अग्रसर हो जाते हैं अथवा मानसिक संतुलन खो बैठते हैं। वास्तव में होना यह चाहिए कि सभी तथ्यों पर गहनता से विचार व चिंतन करके वास्तविक परेशानी तक पहुंचकर, उसे दूर करने के सभी उपायों का तर्क वितर्क की सहायता से विश्लेषण व जांच करके उसका निदान करना चाहिए। इसके लिए धैर्य व संयम की
आवश्यकता है।हमने बचपन में बहुत सी ऐसी कहानियां पढ़ी और सुनी हैं जिसमें नायक या कहानी का प्रमुख पात्र असफलता से निराश नहीं होता बल्कि उससे अनुभव प्राप्त कर,उसके कारणों व उपायों के विषय में चिंतन करके दोबारा प्रयास द्वारा सफलता प्राप्त करता है।इं कहानियों को पढ़ाने या सुनाने का एकमात्र उद्देश्य यही है कि हम जीवन की कठिनाईयों से हार न मानें अपितु वास्तविक कारणों का पता लगाकर,तार्किक चिंतन द्वारा उससे निकलने की सोच विकसित कर सकें। सच तो यह है की ऐसी कोई समस्या नहीं है जिस पर गंभीरता से चिंतन के द्वारा उसका उपाय न खोजा जा सके। जन्म के पश्चात मस्तिष्क के विकास के साथ-साथ हमारे चिंतन करने की क्षमता का भी विकास होता है हम समस्याओं का सामना करने के दौरान जो अनुभव प्राप्त करते हैं उससे एक समझ विकसित होती है और चिंतन के द्वारा उस समस्या का समाधान खोज लिया जाता है समस्याओं को देखने का नजरिया सामाजिक, राजनीतिक, मनोवैज्ञानिक हो सकता है। समझ पर चढ़े असमानता के चश्मे के कारण तथा पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर हम निष्पक्षता से चिंतन नहीं कर पाते हैं।फलस्वरूप वांछित परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते हैं।अत: चिंतन के विषय में हम सभी को गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है।