कहानी

जिंदगी

आज सुबह से ही उसके घर से झगड़े की आवाज आ रही थी पर लोगों ने यह सोचा कि शायद ऐसे ही मामूली घरेलू झगड़ा होगा। अचानक लोगों ने देखा कि पति महोदय अपनी अटैची लेकर बाहर जा रहे हैं और पत्नी व करीब दस ग्यारह साल का बच्चा उन्हें रोकने का भरसक प्रयत्न कर रहे है।पर वह नहीं रूका और चला गया। मायूस से माँ बेटे उसे केवल देखते ही रह गए।
शहरीकरण का इतना भयंकर रुप हो गया है कि लोग एक दूसरे के बीच में बोलते तक नहीं, केवल अपने काम से काम रखते हैं। पहले यदि किसी केयहां कोई लड़ाई झगड़ा हो तो दस लोग खड़े हो जाते थे। किसी भी मामले में लोग हस्तक्षेप जरूर करते थे। और नतीजन पहले लोग कुछ भी गलत कदम उठाने से पहले डरते थे। अब घर तो घर सड़क पर भी कोई किसी को मारपीट रहा हो तो मजाल क्या कि कोईभी बीच-बचाव कर दे। संवेदना कहीं गायब होती जा रही है, बच रही है केवल वेदना।
” रीना क्या बात है? ” रीना को रोते देखकर अब एक पड़ोसन बाहर निकलीं।
“कुछ नहीं, वे घर गये हैं।”कहकर रीना ने बात ढकना चाहा ताकि किसी को कुछ पता न चले।
रीना घर के अन्दर चली गयी। वह फफक – फफक कर रो पड़ी थी। बेटे राहुल ने उसके आँसू पोंछते हुए कहा,
“मत रो माँ, मैं हूँ ना!” रीना ने बेटे की ओर देखा और उसके गले से लगाकर फिर से रो पड़ी।
“हां बेटा, अब तो तुम ही मेरे सब कुछ हो।”
दरअसल रीना की कहानी शुरू होती है जब वह तेरह चौदह साल की छोटी लड़की थी। बहुत ही हंसमुख स्वभाव की एक मस्तमौला लड़की थी। नवीं का पेपर खत्म हो गया था सो हमेशा वह सहेलियों के साथ खेलती रहती थी।रीना बहुत ही सुन्दर थी,उसकी ओर सभी की निगाहें बरबस उठ जाती पर रीना अपने बचपने में ही खोयी हुई थी। दो भाई व दो बहनों में वह सबसे छोटी थी। छोटी होने के कारण उसका पूरे घर में प्यार दुलार भी सबसे ज्यादा था।
एक दिन उसके घर में एक करीब बाइस चौबीस साल का एक किराएदार आया। वह ज्यादातर बाहर ही कोई काम करता था।कुछ दिनों के लिए ही कमरे पर ठहरता था। रीना ने उसकी तरफ कभी भी ध्यान नहीं दिया था।वह उसके बड़े भाइयों का हमउम्र था।
अचानक रीना को लगा कि किसी की आँखें उसका पीछा कर रही है, पर वह इस बात पर कभीभी बहुत ध्यान नहीं देती थी।फिर एक दिन उसी लड़के ने रीना को अकेला देखकर कहा- “सुनो, मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ।”
“क्या? ‘ रीना ने सहमते हुए पूछा।
“मैं तुम्हें चाहता हूँ।” उसका सीधा सा जवाब या जाल था।
यह सुनकर रीना को बहुत गुस्सा आया,पर रीना बगैर कुछ उत्तर दिये वहाँ से हट गयी। दुबारा फिर उसने रीना से बात करनी चाही तो उसने अपने भाइयों की धमकी भी दी थी। रीना डर सी गयी थी उसने कभी इस तरह किसी से बात की ही नहीं थी।
किन्तु उस आदमी ने रीना का पीछा नहीं छोड़ा। धीरे धीरे रीना को भी उसकी बातें अच्छी लगने लगीं।अब वे चुपके चुपके एक दूसरे से बातें भी करने लगे। अलग अलग जाति का होने के कारण उनके घरवाले उनका विवाह नहीं करायेंगे इस बात से वे अवगत थे।
दीपक ने रीना के आगे फिर एक जाल फेंका- “चलो हम लोग दूसरे शहर चलते हैं। वहाँ मेरी बहुत ही अच्छी नौकरी लग रही है। मैं तुम्हें बहुत खुश रखूँगा। मुझपर भरोसा रखो।”
रीना ने सहमति में सिर हिला दिया।हाईस्कूल में पढ़नेवाली वह मासूम सी लड़की अब भागने को तो तैयार थी किन्तु भविष्य पढ़ने की योग्यता उसमें नहीं थी। अब वह पूरी तरह राहुल के जाल में फंस चुकी थी।
हाईस्कूल की परीक्षाएं नजदीक थी किन्तु रीना को परीक्षा से ज्यादा वह आदमी यानि दीपक अच्छा लगने लगा था। परीक्षा आरम्भ होने से पहले ही वह दीपक के साथ भाग गयी। घर वालों ने पहले तो बहुत खोजा फिर हारकर बैठ गये। घर की इज्जत और न उछले इसलिए पुलिस केस भी नहीं किया।
दीपक रीना के साथ बिना विवाह किये ही रहने लगा। वह कभी उसे अपने घर भी नहीं ले गया जब भी रीना उससे घर ले चलने या विवाह की बात करती वह टाल देता था।
धीरे -धीरे समय आगे बढ़ा, उनका एक बेटा भी हो गया। वह भी अब बड़ा होने लगा था पढ़ने भी जाने लगा था। पर रीना के मायकेवालों ने भी उसे अपने लिए मृत मान लिया था।उन्होने उसे अपनाने से साफ मना कर दिया। मायकेवालों की याद तो बहुत ही आती थी पर दीपक के साथ बारह-तेरह साल रहते हो रहा था तो इधर से भी निश्चिंत थी।
दीपक की एक बहुत अच्छी नौकरी लग गयी थी, पैसा आने लगा था तो उसके घरवाले भी उसे अब अपनी ओर खींचने लगे। पैसा हो तो कोई आदमी की उम्र कभी नहीं देखता वह तो बत्तीस-तैंतीस साल का ही था। अब उसके लिए और भी रिश्ते आने लगे थे। उसने अपने घरवालों को रीना और बच्चे की बात नहीं बताई थी। रीना वाली बात उसके किसी रिश्तेदार को भी नहीं पता थी। वह कभी भी रीना को अपने घर भी नहीं ले गया था।केवल उसके माँबाप और भाई-भाभी को ही इस बात की जानकारी थी।उन्होंने उसे फिर से
अपनी ओर खींचा। एक रिश्ता मिल रहा था वहाँ से मोटी रकम भी मिल रही थी।
दहेज़ के लालच ने उसकी आँख पर ऐसा पर्दा डाल दिया कि उसने रीना और उसके बच्चे को छोड़कर दूसरी शादी करने का फैसला कर लिया।
इधर रीना को न तो मायके वाले अपनाने को तैयार हुए और न ही वह इतनी पढ़ी लिखी है कि वह कोई अच्छी नौकरी ही कर ले। पुलिस और कोर्ट कचहरी तो पैसों का खेल है। गरीब पहले पेट पाल ले वही बहुत है, उसके पास इतना पैसा कहाँ? फिर उसके पास विवाह का कोई सर्टिफिकेट भी नहीं था।
उसकी बातें सुनकर आँखों में आँसू आ गये। नारी जीवन की यह एक विकटकथा है। पुरुषों के इस समाज में नारी का स्थान तो गौण ही है। वह हमेशा ही पुरुषों के सामने हार जाती है। किन्तु अगर वह जरा भी समझदारी दिखाती तो ऐसी परिस्थिति में कभी भी न पड़ती। वह पहले अपनी पढ़ाई पूरी करती। किसी अनजान व्यक्ति के हाथों में अपना जीवन ही सौंपने जैसा कदम बिल्कुल नहीं उठाना था। अपने जीवन की डोर दूसरे को दे देना बिलकुल गलत था। आखिर में गलत हुआ भी। बच्चा तो दोनों का था पर जिम्मेदारी डाल दी गयी माँ पर क्योंकि बिना विवाह की सन्तान के लिए दोषी केवल माँ होती है। पिता पाक-साफ व पवित्र होता है।
रीना की सारी बातें सुनकर उसके दयनीय स्थिति पर एक शिक्षिका द्रवित हो गयीं। 24-25 साल की एक महिला अपने बच्चे के साथ कैसे अकेले रहेगी? क्या करेगी? कई सवाल सामने आगे बढ़ी और रीना को ढाढस बंधाते हुए वे उससे बोलीं,-
“रीना पहले तो यह कमरा छोड़कर मेरे पास आ जाओ, मैं तुम्हे अपना एक कमरा दे दूँगी।”
“दूसरी बात मैं तुम्हें किसी कम्पनी में लगवा दूँगी कम से कम अपना और अपने बच्चे का खर्च निकाल लोगी बाकी तो मैं हूँ ही।”
रीना के चेहरे पर एक हल्की-सी सुकून की रेखा तिर सी गयी। जीवन को फिर से एक राह दिखाई देने लगी।

— डॉ. सरला सिंह स्निग्धा

डॉ. सरला सिंह स्निग्धा

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