पर्यावरण

लॉकडाउन से पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव : एक आकलन

पृथ्वी इसका पर्यावरण व प्रकृति कितनी ताकतवर व सक्षम है कि पिछले सैकड़ों सालों से अंधाधुंध औद्योगिकीकरण, शहरीकरण, नदियों, समुद्रों, जंगलों, भूगर्भीय संसाधनों, जैव व वानस्पतिक मंडल के अकूत दोहन व प्रदूषण से इस धरती इसके पर्यावरण को हुई अकथ्य क्षति को जिसे हम कथित सर्वोच्च बुद्धिमान मानव अब फिर से पुनरावस्था में आने की उम्मीद हार बैठे थे, उसे प्रकृति ने इस कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के लिए किए गये लॉकडाउन के मात्र 77 दिनोंं में प्रकृति अपने पुराने व स्वाभाविक सुर, लय, ताल, तरन्नुम में लौटती प्रतीत हो रही है, नदियां अपने शीतल, निर्मल एवं स्वभाविक धारा में बहने लगीं हैं, जहाँ नैनीताल जैसी झीलें और सरोवर भयंकर प्रदूषण से अपनी अंतिम सांसें ले रहे थे, सिसक रहे थे, रूदन कर रहे थे वे भी अब अपने पुरातनकाल के नैसर्गिक आभा बिखेर रहे हैं। उनमें तैरती मछलियाँ इस लॉकडाउन से पूर्व बमुश्किल 7 मीटर गहराई तक दिखाई देतीं थी, अब वे 25 मीटर की पानी अतल गहराइयों में कलोल करती आसानी से देखी जा रहीं हैं, इसी प्रकार जालंधर जैसे शहरों से जहाँ से सामान्य दिनों में हिमालय की दुग्ध धवल उतंग बर्फ से ढकी चोटियों को दूरबीन से भी देखना मुश्किल था, अब वे इन शहरों में वहाँ के लोग अपनी छतों पर चढ़कर अपनी नंगी आँखों से हिमालय के उस नैसर्गिक सौंदर्य को देखने का आनंद ले रहे हैं। कभी दिल्ली जैसे शहरों के बच्चे और निवासी रात में तारों को देखने को तरस गये थे आज वे प्रदूषण रहित आकाश में तारों से लकदक करोड़ों टिमटिमाते तारों की छाँव में अपनी पूरी रात गुजारते हैं। मई-जून के महिनों में अन्य वर्षों में जहाँ 50 डिग्री सेल्सियस की भीषण गर्मी में जहाँ तन-बदन बुरी तरह से झुलस जाता था, इस साल लग रहा है जैसे जून का महिना न होकर शिशिर ऋतु का प्रारम्भिक महिना अक्टूबर का गुलाबी ठंड का मौसम हो या दिल्ली में मसूरी या शिमला उतर इए हों। हरिद्वार की हर की पौढ़ी पर राजाजी नेशनल पार्क की हाथियाँ स्वाभाविक चहलकदमी कर रहे हैं। हिमालय के तराई के जंगलों के तेंदुए, हिरन, लोमड़ी आदि वन्य पशु अपने निकटवर्ती मैदानों, खेतों, खुले स्तेपियों में अपने स्वाभाविक लय में उछलकूद मचा रहे हैं।
हमारी सद् इच्छा है कि लॉकडाउन खुलने के बाद भी मानव खूब औद्योगिक विकास करे, खूब अन्न पैदा करे, सारी दुनिया खूब सम्पन्न हो, इस धरती का कोई भी मानव भूख से न मरे, परन्तु इस दुनिया का विकास इस संतुलित ढंग से हो कि इस धरती पर रहने वाले मानव समाज से अलग तरह के पालतू और वन्य पशु भी अपनी स्वाभाविक व नैसर्गिक जीवन स्वच्छंद होकर व्यतीत करें, इसके अतिरिक्त इस धरती की जीवन रेखा जीवनदायिनी नदियाँ, पर्वत, समुद्र, पोखर, तालाब, रेगिस्तान, जंगल, मैदान, भूगर्भीय जल आदि-आदि सभी प्रकृति प्रदत्त प्राकृतिक संसाधन अपने सुर, लय, ताल में रहें, निरभ्र, स्वच्छ, निर्मल रहें, सभी सुख से जीएं, सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामयाः ।

— निर्मल कुमार शर्मा

*निर्मल कुमार शर्मा

"गौरैया संरक्षण" ,"पर्यावरण संरक्षण ", "गरीब बच्चों के स्कू्ल में निःशुल्क शिक्षण" ,"वृक्षारोपण" ,"छत पर बागवानी", " समाचार पत्रों एवंम् पत्रिकाओं में ,स्वतंत्र लेखन" , "पर्यावरण पर नाट्य लेखन,निर्देशन एवम् उनका मंचन " जी-181-ए , एच.आई.जी.फ्लैट्स, डबल स्टोरी , सेक्टर-11, प्रताप विहार , गाजियाबाद , (उ0 प्र0) पिन नं 201009 मोबाईल नम्बर 9910629632 ई मेल [email protected]