कविता

बाल श्रम

 मेहनत कर करता गुजारा।
 जीवन का कर्म एक सहारा।
 किस्मत ने किया जिसे वरण ,
 बाल -श्रम की व्यथा मर्म -मर्म ।
हर कोई है दुत्कार जाता ।
कोई प्यार से कभी पास बुलाता।
 छोटे हाथों के बड़े कर्म ,
बाल -श्रम की व्यथा शर्म -शर्म ।
जीवन के संघर्ष से लड़ता।
 अपने फर्जो को पूरा करता ।
बचपन खेल के बस रहे भरम।
 बाल -श्रम उन्मूलन हो धर्म -धर्म।
—  प्रीति शर्मा “असीम”

प्रीति शर्मा असीम

नालागढ़ ,हिमाचल प्रदेश Email- [email protected]