ग़ज़ल – क्यों करते हो
जिंदगी जिंदाबाद है फिर मरने की बात क्यों करते हो
ऐ! कायरों की तरह आसूं की बरसात क्यों करते हो!
चंद बाजी हार जाने से ही तुम इतने गमज़दा हो बैठे
मैं पूछता हूँ खुद के पैरों पर ही आघात क्यों करते हो!
हारी शतरंज बाजी भी जीत सकते हो तुम हौसले से
शह को जवाब देना सीखो खुद को मात क्यों करते हो!
कद के दायरे से निकल कर छुओ गगन की ऊंचाई को
गमले में उगे बोनसाई सी अपनी औकात क्यों करते हो!
दुनिया भर के लोग केवल अपने में मगन हैं ऐ निर्मल
पत्थर दिल लोगों से बयां,अपने जज्बात क्यों करते हो!
— आशीष तिवारी निर्मल