ग़ज़ल
देश है उपवन खिले गुल से महकना चाहिए
देश भक्तों के ह्रदय पल पल मचलना चाहिए |
दिल की’ दरिया में अभी अब कुछ नहीं है भावना
नेह के सद्भाव से हर दिल धड़कना चाहिए |
शोर है चारों दिशाओं में नहीं अब शांति है
शांति से सब वृक्ष में पक्षी चहकना चाहिए |
अब बुराईयों के’ पर्वत सब इकट्ठा हो गए
इन पहाड़ों बीच सूरज भी निकलना चाहिए |
जन्म छोटा, कर्म से गर हो बडा इंसान वह
इस जगत में सिर्फ उनको ही निखरना चाहिए |
बर्फ जैसे जम गया है पाप की सब बदलियां
जम गए पर्वत सभी जड़ से पिघलना चाहिए |
नींद में है लोग सब भारत नहीं जागृत अभी
लोकशाही में सभी को ‘काली’’ जगना चाहिए |
कालीपद ‘प्रसाद’