उदाहरण का अंत संभव नहीं !
समाचारपत्रों की सुर्खियों में रहना और हमेशा ही चर्चित रहना महानता नहीं, हीनताबोध है । सवर्णों के बीच अनुसूचित जाति के डॉ. भीमराव अंबेडकर की विद्वता चहुँओर सराहे गए । वे संविधान के प्रारूप समिति के अध्यक्ष है । इस्लामिक देश पाकिस्तान के संविधान के निर्माता डॉ. योगेंद्र नाथ मंडल हिन्दू थे, तो ‘सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा’ लिखनेवाले मुस्लिम थे । आखिर हम धर्मवाद-जातिवाद क्यों करें ? प्रजातंत्र से आशय यह तो नहीं कि हमारी सम्पूर्ण जनसंख्या प्रधानमंत्री बन जाय ! लॉर्ड वेलेजली भी ब्रिटिश भारत के गवर्नर जनरल थे, किन्तु सर्वाधिक पहचान लॉर्ड माउंटबेटन का है ! सलमान रुश्दी का लेखन हो या खैरनार के कार्यों में ईमानदारिता…. यह दो अवस्थाएँ हैं, बावजूद एकल तथ्य लिए हैं । गाँधी जी को ही लीजिए, वे औसत छात्र रहे हैं, कैटल का अर्थ तक नहीं जानते हैं, तो बड़े हास्य हस्ती चार्ली चैपलिन तक को नहीं पहचानते हैं, पट्टाभिसीतारमैया के प्रति कुछ ज्यादा ही अनुराग रखते हैं, ताज़महल देखने नहीं जाते हैं, क्योंकि उसे वे गरीब व मजदूरों के शोषण का प्रतीक मानते हैं, अमीरों के प्रतीक विमान यात्रा नहीं करते हैं ! कहने का मतलब यह है कि महानता में भी सामान्यता छिपी रहती है । वहीं, राजसूय यज्ञ में श्रीकृष्ण ने आग्रहकर आगंतुकों के पैर धोये, तो भोज के जूठे पत्तल भी उठाए व जूठा साफ भी किये । श्रीराम और श्री भरत में से दोनों ने राजतिलक की गेंद एक-दूसरे की ओर लुढ़काने में कोर-कसर न छोड़े । चाणक्य तो प्रधानमंत्री थे, पर झोपड़ी में रहते थे । राजा जनक ने हल चलाये । बादशाह नासिर उद्दीन टोपी सी-सीकर गुजारा करते थे । छत्रपति शिवाजी अपने गुरु के नाम पर राज चलाते थे । सम्राट अशोक तो पहले चंड अशोक थे, जिन्होंने 99 भाइयों को मारकर राजगद्दी हासिल किए थे । द्रोणाचार्य आचार्य होकर भी नौकरजन्य कार्य भी करते थे । बीरबल जंगलों से लकड़ी काटकर बेचने का कार्य करते थे । सिख धर्म के छठे गुरु अर्जुन देव जूठे बर्त्तन माँजने का कार्य भी किये । गाँधी जी जाति से तेली थे, वे साबरमती आश्रम में पैखाना तक साफ करते थे, ऐसा विनोबा भावे भी किया करते थे । गोल्डामेयर चपरासी के क्वार्टर में भी पहुँचती थी । पंजाब के मुख्यमंत्री रहे बरनाला जी जनता की अदालत में जनता से दंडस्वरूप जूते की मार खाये थे ! कई राज्यों के मुख्यमंत्री तो साईकिल से ही दफ्तर जाया करते हैं । मुनि अगस्त्य जी, नारद जी, विदुर जी, तो वहीं सिकंदर, चंद्रगुप्त इत्यादि तो दासीपुत्र थे ! महर्षि व्यास, दानवीर कर्ण, यीशु मसीह इत्यादि कुँवारी माँ की संतान थे, जो कालांतर में क्रमशः मछुआ, सारथी और बढ़ई पिता के संरक्षण पाए । डॉ. अंबेडकर के गले से हाँड़ी बाँध दिया जाता था, ताकि उनकी थूक से धरती दूषित न हो जाय ! वाशिंगटन, लिंकन आदि बचपन में जूते सीने का कार्य करते थे । दाई का पुत्र सुकरात देखने में कुरूप थे । लियोनार्डो डा’विंची का जीवन गरीबी और संघर्षों में बीता । मातृस्नेह से वंचित कन्फ्यूशियस का जीवन भी अभावों में बीता । कार्ल मार्क्स की ‘दास कैपिटल’ पहली बार तो पैसों के अभाव में प्रकाशित नहीं हो पाया था । टोनी मॉरिसन की पहली पुस्तक को प्रकाशकों ने 17 बार ठुकराए थे, पर जैसे ही प्रकाशित हुई, नोबेल प्राइज पायी । मुहम्मद ग़ज़नवी एक ही राजा से 17 बार हारे थे । कबीर और अकबर दोनों ही अनपढ़ थे । नूरजहाँ निर्वासित विदेशी की बेटी थी । शिवाजी के पिता शाहजी भोंसले पहले किसी रियासत के दरबार थे । रेडियम की खोज और अन्यार्थ शोधकर 2 बार नोबेल प्राइज पानेवाली मैडम क्यूरी पहले किसी बड़ी घराने में शिशुपालन का कार्य किया करती थी । बाल गंगाधर तिलक अवैतनिक शिक्षक थे । झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत ताँबे, चिन्ना जी अप्पा के दरबार में कुछ रुपये मासिक वेतन पर गुजारा करते थे । आइंस्टीन बचपन में मूर्ख और सुस्त थे, उनके माता-पिता को यह चिंता होने लगी थी कि बड़ा होकर उनका लड़का जिंदगी कैसे गुजार पाएंगे ?