बेंग का बेटा बेंग, पर…..
मेढ़क का बेटा मेढ़क होता है, लेकिन मनुष्य में चपरासी का बेटा लाट-गवर्नर और कलक्टर का बेटा कबाड़खाने में ताला ठोंकनेवाला हो सकता है ! मजदूर तो पूँजीपतियों के अग्रज हैं, क्योंकि कोयले की खान से ही हीरे निकलते हैं और बालू के संपर्क में आने से सीप मोती बन जाता है । कोयला सस्ता ही सही, पर हीरे का मूल्य कभी महाराजा रंजीत सिंह ने पाँच जूतियाँ आंके थे ! कार्ल मार्क्स के विचार थे- पैसे से आप बिछौना खरीद सकते हैं, पर नींद नहीं।
……पर हाँ, नींद की गोलियाँ तथा क्लोरोफार्म का टेबलेट नींद व बेहोशी लाते-लाते एक दिन मौत की नींद सुला देते हैं ! संपत्ति की अर्जना ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कहावत लिए होती है, क्योंकि भाँग-भाँग कहने से नशा नहीं चढ़ता है । एक लोकप्रचलित गीत है– बड़े घर की बेटी लोग, लम्बा-लम्बा चुल; ऐरो माथा बहान दिबो, लाल गेंदा फूल। वेस्टर्न वर्ल्ड में सात-आठ साल की लड़की ही गर्भपात कराती हैं । इसी विलासिता में डूबे अमेरिकी भगिनी और भाइयों को भारतीय संत स्वामी विवेकानंद ने अपने बोधगम्य प्रवचन देकर उबारे थे । कोई धनी रहे या नहीं, पर परिश्रम ही भाग्य के पर्याय हैं।
आगरा के एक होटल के मालिक श्री कर्दम हैं, जो पहले फुटपाथ पर जूते पोलिश किया करते थे वे टूटे चप्पलों की मरम्मत किया करते थे, किन्तु परिश्रम और पुरुषार्थ के बल पर लोकप्रिय विधायक बन जाते हैं ! वरदराज और कालिदास तो पहले-पहल महामूर्ख थे, परंतु आज लोग उन्हें क्रमशः व्याकरणवेत्ता और कविषु कालिदासः श्रेष्ठ: कहते हैं । नारी के साथ कामुकता, सर्वाधिक धनी कहलाने की जिद, किसी क्षेत्र में रिकॉर्ड कायम करना, फलाँ स्टेट का बॉस कहलाना इत्यादि विशेषण ‘महानता’ के विलोम हैं ! यही कारण है, मंसूर की हत्या, सुकरात को विष, भक्तिन मीरा को सर्प-पिटारी, गाँधी को गोली, भगत को फाँसी इत्यादि दुखांत घटनाएँ ही उद्धम सिंह का जन्म देते हैं!