गीतिका/ग़ज़ल

यूं गुज़ारी जिंदगी

राहों में जिंदगी के ,यूं गुज़ारी जिंदगी।
कभी अज़नबी लगे,पर है हमारी जिंदगी।
मीलों में ये फैली है,जमीं से सितारों तक,
लगे दूर बड़ी मंजिल, है तुम्हारी जिंदगी।
दिल के टुकड़ों को संजोया,यूं कल्बो-ज़िगर,
चले मुस्कुरा के हरदम, यूं संवारी जिंदगी
हंगामा सा बरपा है फिर दिल के जख्मों में
सहके भी दर्द ए दिल पे है वारी जिंदगी
फैला हुआ है हरसू इंसानों का हुजुम
गुज़र रही तनहाईयों में सारी जिंदगी
उठने लगा धुआं है,अब दिल से आंखों तक,
फिर भी रही ख़ामोश ,नहीं हारी जिंदगी।
अब रुह के ऐवान में, जलने लगी शमां,
आईने मे है खुद को ,जब निहारी जिंदगी।
— पुष्पा “स्वाती”

*पुष्पा अवस्थी "स्वाती"

एम,ए ,( हिंदी) साहित्य रत्न मो० नं० 83560 72460 [email protected] प्रकाशित पुस्तकें - भूली बिसरी यादें ( गजल गीत कविता संग्रह) तपती दोपहर के साए (गज़ल संग्रह) काव्य क्षेत्र में आपको वर्तमान अंकुर अखबार की, वर्तमान काव्य अंकुर ग्रुप द्वारा, केन्द्रीय संस्कृति मंत्री श्री के कर कमलों से काव्य रश्मि सम्मान से दिल्ली में नवाजा जा चुका है