लघुकथा

रक्तदान

रक्तदान
अम्मा, तुम मुझें रक्तदान करने से क्यों रोक देती हो?हर बार तुम नए-नए तर्क देती हो।ये सब अंध विश्वास है, रक्तदान करने से शरीर को बड़ी हानि होती है।शरीर बड़ा कमजोर हो जाता है।
चुपकर कालू, क्या मैं तुम्हें इसलिए अच्छा खाना खिलाती हूँ कि तू जाकर रक्तदान करता रहे?दोबारा कभी रक्तदान की बात मुझसे मत करना।पर अम्मा।
कालू ने माँ की बात इस कान से सुनी और दूसरे कान से निकाल दी।वह अम्मा को बिन बताए रक्तदान कर आया।उसे बड़ी खुशी हुई।उसे किसी तरह की कोई कमजोरी महसूस नहीं हुई।
कुछ दिन बाद, अचानक अम्मा की तबियत बिगड़ गई।वह तुरन्त हॉस्पिटल पहुँचा।डॉक्टर ने सारी जाँच- पड़ताल करके
अम्मा के शरीर में रक्त की कमी बताई।उन्होंने ने कालू से तुरन्त रक्त का प्रबंध करने को कहा।
अम्मा, कालू का चेहरा देख रही थी।उसे चिन्ता हो रही थी कि उसे कौन रक्त दान करेगा।अम्मा,चिन्ता मत करो।सब ठीक हो जाएगा।अम्मा, को रक्त मिल गया था।अब उनका स्वास्थ्य ठीक हो रहा था।उन्होंने ने कालू से पूछा, कि उसे रक्तदान किसने किया है?
अम्मा, मैंने तुम से बिना पूछे ही कुछ दिन पहले रक्तदान कर दिया था।उसी संस्था ने आज जरूरत पड़ने पर हमारी मदद की है।
कालू,बेटा मेरा भी नाम लिखवा दे रक्तदान संस्था में।मैं भी अब रक्तदान किया करुँगी।सच अम्मा।ये रक्तदान नहीं, किसी के लिए प्राणदान है।अम्मा कह रही थी।
राकेश कुमार तगाला
पानीपत(हरियाणा)
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राकेश कुमार तगाला

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