कविता

आया आषाढ़

ऋतु अााईआषाढ की

छाए कजरारे कजरारे बदरा
भीगी भीगी है ऋतु
मन हुआ मयूर सा
गिरते पानी में
करे छपक छपक
नाचे मगन
तिक ता धीगी धीगी
तिक ता धीगी धीगी
तन भिगोए मन भिगोए
पेड़ों पे पड़ गए झूले
सखियां झूले
करें चुहलबाज़ी
परदेश गए
बालम का करें इंतजार
मन डोले मयूर बन
नाचें थिरक थिरक
नाचें थिरक थिरक
ए जी देखो
आयो आषाढ
*ब्रजेश*

*ब्रजेश गुप्ता

मैं भारतीय स्टेट बैंक ,आगरा के प्रशासनिक कार्यालय से प्रबंधक के रूप में 2015 में रिटायर्ड हुआ हूं वर्तमान में पुष्पांजलि गार्डेनिया, सिकंदरा में रिटायर्ड जीवन व्यतीत कर रहा है कुछ माह से मैं अपने विचारों का संकलन कर रहा हूं M- 9917474020