श्रमिक
सींच पसीने से खेतों को,
उदर जगत का वह भरता
विडंबना देखो यह कैसी
भूखे पेट वही मरता
नींव भवन की रखते रखते
हुआ नींव सा अनदेखा
कंगूरा छाती चढ़ बैठा
है विधि की ऐसी रेखा
सड़क बनाने वाला कर्मठ
शयन सड़क पर ही करता
विडंबना देखो यह कैसी
भूखे पेट वही मरता
दुनिया की सारी गति उससे
गति उसकी पर बड़ी बुरी
राष्ट्र धुरी का निर्माता वह
किंतु श्रमिक की नहीं धुरी
शीत ठिठुरता वर्षा भीगा
गर्मी स्वेद बिंदु झरता
विडंबना देखो यह कैसी
भूखे पेट वही मरता
— अनंत पुरोहित ‘अनंत’