सच कहता हूँ
आया ‘कोरोना वायरस’ सबसे ज्यादा हम बेहाल हुये,
सच कहता हूँ, हम मजदूरों के बहुत ही बुरे हाल हुये।
छूटा रोजगार तो दाल रोटी के लाले हो गये,
मकान मालिक भी किराये के तलाशी हो गये।
हम मजदूर,मजबूर,बेबस व लाचार बन गये,
उठा झोला परिवार संग घर की ओर चल दिये।
न ट्रेन,न ही मोटरकार और न ही कोई बस मिली,
पैदल ही चले क्योंकि न कोई और आशा दिखी।
हम गिरे,गिरकर फिर उठे,चल दिये,चलते गये,
खुद रोये,खुद चुप हो गये,आगे बढ़े,बढ़ते गये।
भूख,प्यास से हम जूझते गये फिर भी आगे बढ़ते गये,
पैरों के छालों की ना फ़िक्र की,हम आगे चलते गये।
जो आयी विपदा उसके हम गरीब न जिम्मेदार है,
जो रईस आये विदेश से वही असली कर्णधार है।
तुम ‘एअरपोर्ट’ पर अच्छे से उनकी जाँच करते,
होते लक्षण तो उन्हे वही ही क्वारेंनटाईन करते।
न फैलता वायरस और हम सब सुरक्षित बच जाते,
चन्द रईसों के चक्कर मे यूँ न हम दर-दर की ठोकर खाते।
करनी इनकी थी पर बदनाम हम गरीब मजदूर हो गये,
इन पासपोर्ट्स के चक्कर मे राशनकार्ड के चिथड़े उड़ गये।
— अभिषेक शुक्ला