कविता

बाल श्रम

दूध के सारे दाँत समय से पहले ही टूट गये,
जिन्दगी की शुरुआत मे ही विधाता रूठ गये।
मजबूरियों ने हाथ मे चाय की केतली क्या पकडाई,
मैने करीब से देखी अपने बचपन की अंगडाई।
चाय की चुश्कियों मे अभिषेक अब मिलावट हो गयी,
आडी तिरछी जिन्दगी की सारी लिखावट हो गयी।
चाय से ज्यादा अब चाय पर चर्चा हो रही है,
इसकी बिक्री में भी भारी गिरावट हो गयी है।
जरूरी नही हर एक चाय बेचने वाला बुलंदियों पर पहुँचे,
क्योंकि गरीब के बचपन पर भारी इसकी गर्माहट हो गयी है।’
— अभिषेक शुक्ला

अभिषेक शुक्ला

सीतापुर उत्तर प्रदेश मो.न.7007987300 नवोदित रचनाकार है।आपकी रचनाएँ वास्तविक जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये युवा पाठको को बहुत ही पसंद आती है।रचनाओ को पढ़ने पर पाठक को महसूस होता है कि ये विषयवस्तु उनके ही जीवन से जुडी हुयी है।आपकी रचनाये अमर उजाला, रचनाकार,काव्यसागर तथा कई समाचार पत्रो व पत्रिकाओ मे प्रकाशित हो चुकी है।आपकी कई रचनाये अमेरिका से प्रकाशित विश्व प्रसिद्ध मासिक पत्रिका "सेतु "मे भी प्रकाशित हुई है।