ज़िंदगी का फलसफ़ा
ज़िंदगी को शिद्दत से की गई शिरकत समझो,
तो ज़िंदगी इनायत हो जाती है
ज़िंदगी को गिले-शिकवों का पुलिंदा समझो,
तो ज़िंदगी शिकायत हो जाती है
ज़िंदगी को रसभरी तरन्नुम समझो,
तो ज़िंदगी नज़ाकत हो जाती है
ज़िंदगी को परमात्मा की नेमत समझो,
तो ज़िंदगी इबादत हो जाती है.