गीत/नवगीत

ज़िंदगी का फलसफ़ा

ज़िंदगी को शिद्दत से की गई शिरकत समझो,

तो ज़िंदगी इनायत हो जाती है

ज़िंदगी को गिले-शिकवों का पुलिंदा समझो,

तो ज़िंदगी शिकायत हो जाती है

ज़िंदगी को रसभरी तरन्नुम समझो,

तो ज़िंदगी नज़ाकत हो जाती है

ज़िंदगी को परमात्मा की नेमत समझो,

तो ज़िंदगी इबादत हो जाती है.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244