आंखों से कमाल करते हैं।
व्यंग्य कविता।
बात होती जब वतन की वो सवाल करते हैं।
खामोशी से कभी आंखों से कमाल करते हैं।
तुम डरते हो बाहर के दुश्मनों से क्यों भला;
वो भीतर छुप कर सरजमीं लाल करते हैं।
हैं कुरितियां कितनी ही समाज में जो देखो तो;
वो ढूंढ कर कुछ बातें रोकर मलाल करते हैं।
जब चुनाव था तो बहुत ही काम था जनता से;
वादों को पूरा करने में अब कितने साल करते हैं।
फौज पर भी राजनीति की अब तो बारी आ गई;
अपने नाम के लिए उनका भी इस्तेमाल करते हैं।
कामनी गुप्ता***
जम्मू !