कविता

नासूर

खुद को ही
खुदा समझ बैठे हो  तुम ?
क्या खुदाई नजर नहीं आ रहीं
उस खुदा की ?

क्यों तुम
अपनी शख्सियत के बोझ तले
दबा रहे हो आज भी
और लोगों को ?

क्या तुम को
रता भर भी एहसास नहीं है,
कि दबे हुए लोग जब उठेंगे
तो उखाड़ कर फेंक देंगे,
तुम्हारी जिद्दी शख्सियत को।

क्यों तुम
औरों को दिखाकर नीचा,
खुद को ही
मसीहा समझ बैठे हो
खुद की नजरों में ।

क्या तुमको
रता भर बुराई नजर नहीं आती ?
खुद की बिखरी हुई शख्सियत में ?
जो औरों के ह्रदय को भी
कीलित कर रही है बनकर नासूर।

— राजीव डोगरा ‘विमल’

*डॉ. राजीव डोगरा

भाषा अध्यापक गवर्नमेंट हाई स्कूल, ठाकुरद्वारा कांगड़ा हिमाचल प्रदेश Email- [email protected] M- 9876777233