बालगीत “चौमासे ने अलख जगाई”
रिमझिम-रिमझिम पड़ीं फुहारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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तन-मन में थी भरी पिपासा,
धरती का था आँचल प्यासा,
झुलस रहे थे पौधे प्यारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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आँधी आई, बिजली कड़की,
जोर-जोर से छाती धड़की,
अँधियारे ने पाँव पसारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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जल की मोटी बूँदें आयी,
चौमासे ने अलख जगाई,
खुशी मनाते बालक सारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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अब मौसम हो गया सुहाना,
आम रसीले जमकर खाना,
पर्वत से बह निकले धारे।
बारिश आई अपने द्वारे।।
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(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)