2,05,00,912 तरीके से हिंदी का एक शब्द लिखा जाना
2000-2001ई. में जब मैंने हिंदी शब्द ‘श्री’ को 2,05,00,912 तरीके से लिखा । मूलरूप से उनमें 30,736 (कैलीग्राफी सहित) शब्दों को 666 चिह्नों/प्रतीकों से जोड़ते हुए उनके ध्वन्यात्मक-अर्थ के साथ ‘श्री’ का सार्थक उच्चारण कराया, तो ‘ध्वनि-व्याकरण’ की प्रत्यर्थ अवधारणा मानस – पटल पर आयी, जिनके विन्यसत: संलग्न-दस्तावेज़ में 16 (‘श्री’ के लिए लिखा) संकेत-विस्तार को और आगे बढ़ाते हुए हिंदी का संभवत: पहला ‘ध्वनि-व्याकरण’ लिख डाला । पं. कामता प्रसाद गुरु ने ‘हिंदी व्याकरण’ में लिखा है— ” ध्वनि को पहचानने के लिए एक-एक चिह्न नियत किये जाते हैं…एक ही मूल ध्वनि के लिए उनमें भिन्न-भिन्न अक्षर होते हैं”। “अँग्रेजी वर्णमाला में कैपिटल (ए टू जेड ) और स्माल (ए टू जेड) वर्ण-स्थिति को लेकर ’52’ वर्ण हैं । अंतिम शोध के अनुसार हिंदी में भी ’52’ वर्ण हैं, यथा:-
स्वर:-अ,इ,उ=3/ संयुक्त स्वर:-आ,ई,ऊ,ओ,औ,ए,ऐ,ऋ=8/ व्यंजन:-‘क’ से ‘म’ तक =25/ व्यंजन-स्वर:-य,ल,व,स,श,ष,ह=7/ स्वर-व्यंजन:-र,ड़,ढ़=3/ संयुक्त व्यंजन:-क्ष,त्र,ज्ञ,श्र,ॐ=5/अन्य:-अं=1 (कुल=52)
इनके अलावा ध्वनियाँ एवम् प्रतीकार्थ चिह्न ही हैं ।
‘साहित्य अमृत’ (पृष्ठ-61, जनवरी 2001):– “……भाषा-प्रयोग में श्री रमेश चंद्र मेहरोत्रा की कुछ बातें गलत है कि ‘निम्न उदाहरण’ का अर्थ ‘तुच्छ उदाहरण’ होता है, जो पूर्णतः भ्रामक तथ्य है । यहां ‘निम्न’ शब्द को ‘क्वालिटी’ के सन्दर्भ में न लेकर अगर ‘नीचे’ के सन्दर्भ में ले तो ज्यादा ही सार्थ-पहल होगा। ‘तुम से’ और ‘तुम-से ‘ दोनों सही हैं, बशर्तें हमें यह देखना है की इन दोनों का प्रयोग कहाँ हो रहा है ? दोनों में ‘जैसे’ की प्रधानता है, विशेषत: ‘तुम-से’ में जोरदार-जैसे है । ‘सारे जहाँ से’ से अधिक ‘सारे जहाँ में’ में अर्थ की यथेष्ट प्रबलता है ।”
—– इसके साथ ही हिंदी मे द्विलिंगी शब्दों की संख्या बहुतायत में है । दो या दो से अधिक सार्थक शब्द/शब्दों के संधि-शब्द अलग-अलग लिंग -स्थिति के चलते द्विलिंगी होते हैं । ‘विद्यालय ‘ द्विलिंगी शब्द के उदाहरण हैं । वहीँ ‘पटने ‘ कहने से पटना के लिए कोई बहुवचन-बोध नहीं होता है । शब्दों के पीढ़ीगत-सन्ततिनुमा शब्द को ‘अपत्यवाचक संज्ञा ‘ कहते हैं , जैसे:– दशरथ से उनके पुत्र ‘दाशरथी’ कहलाये। दीर्घान्त शब्दों के बहुवचन बनाते समय ह्रस्वान्त के बाद ‘याँ’ जोड़ें । चंद्रबिंदु तो अब अनुस्वार हो गया है…. कई प्रयोग समयावसर होते हैं। यही तो भाषा की ग्राह्य-विविधा है।