आत्महत्या देश के युवाओं को नकारात्मक सन्देश
आत्महत्या देश के युवाओं को नकारात्मक सन्देश
एक स्त्री की कोख में जब एक भ्रूण बनता है तब से वह स्त्री नौ महीने तक प्रशन्नता के भाव से, एक – एक पल से आशाओं के महल बनाती है। एक स्त्री जाति के लिए चाहे वह किसी भी योनि में हो, माँ बनने का सुख अद्भुत , अपरमित और आनंदमयी होता है। तुलसीदास ने अपने रामचरितमानस के बालकाण्ड में लिखा है “बाँझ कि जान प्रसव कै पीड़ा।” कहा जाता है जितनी पीड़ा बच्चे के जनन के समय एम स्त्री को होती है , उतनी पीड़ा पर सामान्य बीमारी में इंसान की मृत्यु हो जाती है। लेकिन वही सन्तान जब किसी तनाब में आकर आत्महत्या करले तब उस माँ पर क्या बीतती है यह बात शायद वह नहीं समझ सकता। एक पिता अपने जीवन के सपने अपनी सन्तान की सफलता में देखता है। लेकिन यह क्या?
दुनिया में ऐसा कोई तनाब नहीं जिसका समाधान नहीं हो। माना कई ऐसी समस्याएँ जीवन में आती हैं जिसके कारण तनाव बढ़ जाता है। लेकिन इन समस्याओं को आमंत्रण भी तो हमने ही दिया है। कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार तो हम ही हैं। अत्यधिक विलासिता भी आज तनाव का बड़ा कारण है।
मानव परमात्मा की सबसे उत्कृष्ट कृति है। तुलसी ने लिखा कि धीरज धर्म मित्र अरु नारी। आपद काल परिखिअहिं चारी
अगर समस्या है तो कुछ दिन धैर्य रखना चाहिए। समाधान स्वतः आता है। परमात्मा ने विशेष योग्यताओं के साथ किसी विशेष प्रयोजन से आपको धरती पर उतारा गया है। लेकिन इस उद्देश्य को निभाये बिना आत्महत्या जैसी कायराना हरकत करना उस ईश्वर के प्रति अविश्वास औऱ उस परम सत्ता की अवहेलना है।
हिंदी फिल्मों में हम देखते हैं कि हीरों के सामने समस्याओं के बाद समस्याएं आती हैं , लेकिन हीरो हर समस्याओं पर विजय प्राप्त करता है औऱ अंत में जीत जाता है।
हिंदी फिल्मों के अभिनेताओं को भारत के ही नहीं विदेशों के युवा भी फॉलो करते हैं। लेकिन एक हीरो का अपने फैन्स के लिए यह अंजाम देना हीरो होने के गुण तो नहीं हैं।
बॉलीबुड अभिनेता सुशांत की आत्महत्या करना देश के युवाओं औऱ उनके चाहने वालों को एक नकारात्मक सन्देश है। देश को युवाओं से अपील करता हूँ जिंदगी में मुस्कराकर जीना सीखें । आत्महत्या कायरता है।
डॉ. शशिवल्लभ शर्मा