बदनसीब बचपन
मेरी मां कौन है
मुझे मालूम नहीं
मेरे पापा कौन है
मुझे मालूम नहीं
ठंड में लगाने वाला गर्म कपड़ा
कैसा होता है मुझे मालूम नहीं ।
गर्मी होने पर..,
धूप निकलने पर..,
बरसात होने पर..,
घर के अंदर रहने पर
कैसा महसूस होता है
मुझे मालूम नहीं
मां बाप का प्यार दुलार
कैसा होता है मुझे मालूम नहीं ।
बीमार होने पर बाबू तुम कैसे हो
कहकर पूछने वाला कोई नहीं है
मुझे स्पर्श कर
मुझ पर हाथ फेरने वाला
कोई नहीं है ।
मुझे सिर्फ मालूम है
भूख…!
रोग…!!
बरसात…!!!
छोटा हूं
क्या सही है
क्या गलत है
कह नहीं सकता ।
सिखाने वाला कोई नहीं है
अनजान में गलती हो गया होगा
किसी दिन भूख बर्दाश्त ना होने पर
दूसरे से छीन कर खा लिया होगा
मैं यह यातना नहीं सह सकता
मर जाऊंगा
इतनी बेरहमी से मत मारो मुझे
मुझे बहुत दर्द होता है
मुझे बहुत भूख और प्यास लगा है ।
— मनोज शाह ‘मानस’