कान्हा
ओ कान्हा ओ कान्हा
धुन पर तेरी थिरकना
हर पल दिल को क्यों भाता है
मैं हूँ तेरी तू है मेरा
क्यों गीत यही दिल गाता है
ओ कान्हा ओ कान्हा
मुस्कान मधुर तेरे कपोलों पर
देखकर दिल बरबस रुक जाता है
तू है मेरा मैं हूँ तेरी
वृन्दावन में मन रम जाता है
ओ कान्हा ओ कान्हा
छेड़ दो अपनी मधुर मुरलिया
दिल को बस यही भाता है
मैं हूँ धड़कन तू है साँसे
पल पल दिल भर आता है
— वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़