इतिहास

राजा दाहिर सेन बलिदान दिवस 16 जून

राजा दाहिर सेन सिंधु देश राज्य करने वाले अंतिम हिंदू राजा हुए जिनकी वीरता और पराक्रम से भारत भूमि कई दशकों तक सुरक्षित रही। सन 663 से 712 ईसवी तक राजा दाहिर ने सफल शासन किया। इनसे पहले सिंध के राजा चंद्रसेन बौद्ध बन गए थे। बौद्ध भिक्षुओं के प्रति सिंध में भी सम्मान का भाव था, परन्तु कुछ बौद्ध भिक्षु राजा दाहिर से द्वेष रखते थे, यह दुर्भाग्यपूर्ण द्वेष उस समय सामने आया जब बगदाद के खलीफा के निर्देश पर मुस्लिम आक्रमणकारी मोहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया, तब सिसत्वान व निरोनकोट में बौद्ध भिक्षुओं ने बिन कासिम की सेना का स्वागत किया था। राजा दाहिर वीर व पराक्रमी थे, बिन कासिम की सेना ने सिंध पर आक्रमण किया, पहले ही दिन बिन कासिम की सेना बुरी तरह हारी। यह देखकर उसने फिर से तैयारी की इस बार छल से आधी रात में सिंध पर आक्रमण करके दाहिर सेन को परास्त किया। चूंकि भारत के योद्धा दिन में युद्ध करते थे, ऐसे छल और धोखे का उन्हें अभ्यास नही था, जबकि मुस्लिम आक्रांता धोखे से ही युद्ध जितने में विश्वास रखते थे उनके लिए युद्ध के नियम कोई महत्व नही रखते थे। राजा के मरते ही बिन कासिम की सेना सिंध पर टूट पड़ी। महिलाओं से बलात्कार होने लगे, धन संपदा लूटी जाने लगी। राजा की दोनों बेटियों को खलीफा को सौंपने के लिए बगदाद ले जाया गया, दाहिर सेन की दोनों वीर बेटियां सुर्या व परमाल बहुत पराक्रमी, बुद्धिमान थी। खलीफा के सामने पहुंचते ही उन्होंने मोहम्मद बिन कासिम द्वारा उनके चरित्र हनन की कहानी बताइ, जिससे क्रुद्ध होकर के खलीफा ने मोहम्मद बिन कासिम को भैंसे की खाल में बंद करके बगदाद लाने का निर्णय सुनाया। मोहम्मद बिन कासिम को उसी के सिपाही भैंसे की खाल में बन्द करके बगदाद लाये, रास्ते में ही वह दम तोड़ चुका था, बगदाद पहुचने पर खलीफा ने बिन कासिम का शव सूर्या और परमाल को दिखाया। यह देख दोनों बहनें बहुत प्रसन्न हुई। उन्हें खुशी हुई कि हमारे देश पर हमला करने वाले से हमने बदला ले लिया, इसके बाद दोनों बहनों ने विष से बुझे हुई कटार एक दूसरे को घोंपकर स्वाभिमान की मृत्यु का वरण किया।
भारत पर हुए आक्रमण का पहला बदला, किसी पुरुष ने नही बल्कि इस देश की वीर बेटियों ने लिया। आज युवतियों के लिए सूर्या और परमाल आदर्श होना चाहिए। राजा दाहिर सेन जैसे अनेक व्यक्तित्व हुए जिन्हें इतिहास की किताबों में उचित स्थान न मिल सका। इस देश के पराक्रम को जान बूझकर छुपाया गया। गुलामी के इतिहास और भ्रमित करने वाले साहित्य को छापा गया, दुर्भाग्य से देश मे ऐसे शाषक रहे जो देश के स्वाभिमान को सही रूप में आंक नही सके, गुलामी के चिन्हों को समाप्त नही कर सके, देश के नायकों को इतिहास व साहित्य में सही स्थान नही दे सके। परन्तु आज सही समय है, राजा दाहिर सेन जैसे सभी व्यक्तित्वों को वह पहचान मिले जिसके वे सर्वथा योग्य है।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश