ये बात तो हमने अक्सर सुनी ही है “चिराग तले अंधेरा” और “चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं”। शायद चकाचौंध से लेस फ़िल्म , टेलीविजन इंडस्ट्री , ग्लैमर , फैशन दुनिया की भी यही कहानी है। जो बाहर से जितनी चमकदार और उजली नज़र आती है अंदर से उतनी ही काली।
नाम, शोहरत,पैसा, बनते बिगड़ते रिश्ते या तो नशा बनकर सिर पर बोलने लगता है या किसी को कभी इस हद तक अकेला कर देते हैं की वो खुद से ही दूर हो जाता है।
अनेको कहानी ,किस्से,सवाल हैं जिनका हल आज तक कोई पा नहीं पाया फिर भी जिसे देखो इसका स्टारडम , इसकी चकाचौंध अपनी ओर खींच लाती है।
वो ही ऐसी दुनिया जहां कोई किसी का नहीं होता।सबको अपने काम ,अपनी शोहरत, अपने रुतबे से मतलब है।
आधे से ज़्यादा लोग इस पर राज करते हैं जिन तक पहुंच पाना भी सबके बस की बात नहीं। कुछ खानदानी परंपरा को बढ़ाते पीढ़ी दर पीढ़ी कलाकार, कुछ बड़े प्रोडक्शन हॉउस, कुछ बड़े बैनर्स, कुछ बड़े नामचीन कलाकार जिन से शायद ये बर्दाश्त या उनके गले ही नहीं उतरता की कोई नया चेहरा, बिना जान पहचान या गॉड फादर या फिर फिल्मी खानदान से न होकर भी अपनी एक कामयाब पहचान बना ले। खासकर जो छोटे शहरों से आने के बावजूद कामयाबी की बुलंदियों को छूने लगते हैं।
इसे एक तरह का माफिया नहीं तो और क्या कहेंगे की आप एक अच्छे कलाकार को इसलिए अपना नहीं रहे या चांस नहीं दे रहे क्योंकि उसने अपनी काबलियत से खुद को साबित किया है। आपने बस कुछ चुनिंदा नाम अपने अपने बैनर्स के हिसाब से तय कर लिए जिनके साथ ही आप काम करेंगे फिर कोई दूसरा चाहे ज़्यादा टैलेंटेड क्यों न हो। बस या तो भाई भतीजा वाद चलेगा या सिफारिश या शोषण। जो इन सब चीजों से कर परहेज़ करे उसका बॉयकॉट कर लो।
आखिर ये कैसी अंधी, मतलब परस्त ,जिस्म फरोश बेमानी सी दुनिया है जहाँ रिश्ते भी उतने खोखले, झूठे और काले जितनी ये दुनिया।
यूँ तो उतार चड़ाव हर इंसान की ज़िन्दगी में आते हैं, वक्त कभी एक सा नहीं रहता और ये भी ज़रूरी नहीं की कामयाबी हर किसी को मिल जाये पर यहां जो बात सही नहीं है वो है करनी और कथनी में फर्क या फिर शोषण।
इतिहास को खंगाल कर देखें तो कितने ही फिल्मी या टीवी कलाकारों ने अपनी जान खुदकुशी करके गवाई है जिसका मुख्य कारण या तो डिप्रेशन बना या रिश्तों में तनाव। क्या यही असली पहचान है इस चकाचौंध से भरी लाइट, एक्शन, कैमरा की दुनिया की जिसमें सिर्फ अकेलापन, बेबसी , खोखलापन है एक नकाब जो चेहरे को इन भावों को छिपा नहीं पाता जिस का जीता जागता उदाहरण है हाल ही में आत्महत्या की उभरते सितारे सुशांत सिंह राजपूत ने मात्र 34 वर्ष की उम्र, हँसता मुस्कुराता मासूम चेहरा , अच्छा खासा नाम, शोहरत, घर, पैसा फिर भी मौत को गले लगाया पीछे छोड़ अनकहे सवालों की झड़ी। जिसे जीने की भरपूर चाह थी, कला, खेल, पढ़ने में दिलचस्पी थी। एक जिंदादिल इंसान क्यों फिर मौत पर झूल गया ज़िन्दगी को पीछे छोड़।
पिता जब अपने बेटे को मुखाग्नि देने पहुँचे तो मानो आसमान भी ज़ार ज़ार रोने लगा। हर इंसान सकते में और सवाल एक ही आखिर क्यों???
और शायद यही हर बार होता है कुछ दिन बाद सब शांत और ऐसे ही चलती रहती है ये चकाचौंध बनाम अँधेरी दुनिया । जहाँ कोई किसी का नहीं एक चेहरा , एक नाम कब गुमनाम बन जाये या मौत को गले लगा ले कुछ कहा नहीं जा सकता रह जाते हैं पीछे तो बस उनके सिसकते परिवार, चर्चा , आरोप, प्रतिरोप और सवाल बस अनबुझे सवाल।
— मीनाक्षी सुकुमारन