जिंदगी
जिंदगी इक जंग का मैदान है,
बीच में इसके फँसा इंसान है।
पार करना जिंदगी की सिंधु को,
मान लो होता नहीं आसान है।
है परीक्षा ज्यों हमारी जिंदगी,
पास अथवा फेल से अनजान है।
कर्म से प्रारब्ध से निज भाग्य से,
हाथ हर आया – गया सामान है।
है चुनौती जिंदगी में लाख लेकिन,
हारकर चुप बैठता नादान है।
साँस के आवागमन का खेल यह,
और इस पर ही जहाँ कुर्बान है।
वक्त से दो हाथ करता चल अवध,
जिंदगी में कर्म ही पहचान है।
— डॉ अवधेश कुमार अवध