जिस दिन
जिस दिन बाड़ ,
खेत को खाना छोड़ देगी ,
उस दिन हरेक आंगन मेँ
सोने की चिड़िया चहचहाएगी ।
जिस दिन जनता
अपनी पीठ थोड़ी वक्र कर लेगी,
उस दिन, कोई भी छुटभैया,
उसकी पीठ पर नारे नहीँ लाद पाएगा ।
जिस दिन नदिया जान जाएगी कि
सागर से मिलकर
उसका पानी खारा हो जाएगा,
उस दिन कोई नदिया ,
सागर से मिलने नहीँ जाएगी ।
जिस दिन जनता
मुखौटोँ का सच जान जाएगी,
उस दिन कई बहुरुपियोँ की दुकानेँ
खुद-ब-खुद बंद हो जाएंगी ।।
— अशोक दर्द