कविता

दिखावटी सेकुलरता

दिखावटी सैकुलरता

दूर देश जब
हुआ अन्याय,
और इक “अश्वेत” की जान गई ।
सात समंदर पार,,,
इस मेरे देश में…
बुद्धिजीवियों की जान ही निकल गई।

आक्रोश भरी फिर दिखीं तख्तियां,
बने वीडियो
आंखों में ज्वाला भी भभक पड़ी
ख़ामोश जो लब थे
“भगवा कत्ल” पर
नींद उनकी भी उचट गई।

अपने ही देश में,
गरीब के पलायन पर
मदद को थे न इनके हाथ बढ़े ।
खुद ही फैला कर
जमीं पर दाने
अखबारों के कैमरे थे
खूब चमके।

डाक्टर-वर्दी के मुजरिमों
के खिलाफ
इस तख्ती गैंग को था
न शब्द मिला ।
फैलाई गई थी, देश में अराजकता
सेकुलरता का मुख
तब क्यों था सिला?

हां !
चाहिए देश को भी
कुछ मुखर आवाजें
जो देशहित में लगातार उठें
मुद्दा या मुद्दई देख कर
रुख अपना जो न मोड़ें ।
… देशहित को न छोड़ें।

अंजु गुप्ता

*अंजु गुप्ता

Am Self Employed Soft Skill Trainer with more than 27 years of rich experience in Education field. Hindi is my passion & English is my profession. Qualification: B.Com, PGDMM, MBA, MA (English), B.Ed